शुकसप्तात एक आलाचनात्मक अध्ययन | Shuksaptati Ek Alochanatmak Addhyayan

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Shuksaptati Ek Alochanatmak Addhyayan by हिमांशु द्विवेदी - Himanshu Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानवीय कथा का मुख्य पात्र मनुष्य ही होता है। ऐसी कथाओं के द्वारा भी लोक--व्यहार नीति या सदाचार का उपदेश दिया जाता है। अधिकतर इस प्रकार की कशथाये इतिवृत्तात्मक ही होती हैं जिनमें लोक प्रथित मानवों के सम्बन्ध में नाना प्रकार की किवदन्तियों रोचक तथा कौतूहल जनक ढंग से ग्रंथित होती हैं । अतिमानवीय कथाओ के पात्र प्रमुखत भूत-पिशाच बेताल यक्ष-यक्षिणियाँ अप्सरायें आदि होती हैं। ऐसी कथाये अधिकतर मनोरञ्जनात्मक ही होती हैं| आश्चर्यजनक घटनाओ के वर्णन के द्वारा ये कथायें श्रोताओ या पाठकों के मन में कौतूहल उत्पन्न करने तथा सृष्टि के रहस्यात्मक पक्ष के प्रति उसकी कल्पना को उद्दीप्त करने मे पर्याप्त सफल होती हैं इसलिए इनमें ऐसी कथाओ का भी नितान्त अभाव नहीं है जो मानव को उदत्त चरित्रों की ओर आकर्षित करती हैं । (4) कथा का स्वरूप काल्पनिक अथवा ऐतिहासिक कथा के सन्दर्भ में यह तथ्य शीघ्रता से उठता है कि कथा में कल्पना की प्रधानता होती है तथा लेखक किसी ऐतिहासिक तथ्य को अपनी रचना का आधारशिला बनाता है। कथा का इतिवृत्त उत्पाद्य होता है और उत्पाद्य वस्तु कवि कल्पित होती है। जबकि इतिहास का अर्थ इसके विपरीत होता है। इति-ऐसा ह-निश्चित रूप से और आस-पास हुआ। इस प्रकार इतिहास सत्य घटनाओं को ही उपस्थित करता है। कथा का अरविर्भाव आदिम मानव की उस अवस्था में प्रस्फूटित हुआ जब वह शिशु था। समस्त लोककथा-साहित्य एवं धर्म गाथाये प्रथमत दिव्य प्रकृति व्यापारों के वर्णन का रूपक हैं और द्वितीयतः कृषि उत्पादन एवं प्रजनन सम्बन्धी भावाभिव्यक्ति करने का साधन । इन दोनों ही दृष्टिकोणों में गाथाओं के पात्रों का ऐतिहासिक अस्तित्व नहीं है। परन्तु कथा में सदैव ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव ही हो ऐसा आवश्यक नहीं है। 14 उत्पाद्य कविकल्पित॑ धनउ्जय दशरूपक प्रथम प्रकाश कारिका 15 7] नकड्शणगा का दस रद जगत बुछ एए कि ए नाक पर पाए




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