जनानी ड्योढ़ी | Janani Dyodhi

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Janani Dyodhi by किरण शेखावत - Kiran Shekhawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३६ ज्ञनानी ड्योढ़ी शुभ कामनायें स्वीकार कर भ्रौर उन्हें धन्यवाद देकर उनके साथ पीते रहें। प्स कोलाहल में कांग सेठानी ने तिरछी नज़रों से रानी वू की भ्रोर देखकर एक छोटा प्याला उठाया। रानी ने भी एक छोटा प्याला ले लिया। दोनों ने किसी रहस्य के प्रति परस्पर श्रनुमति में प्याले पी लिये। वृद्ध श्रब तक सामय्यं भर खा चुकी थीं श्रौर थककर सहारे के लिये कुर्सी की पीठ पर सिर टिका दिया था। उड़ती-उड़ती नज़रों से उन्होंने अपने परिवार के लोगों को देखा श्रौर बोलीं-- श्ररे लिग्रांगमों मुरभाया हुमा क्यों लग रहा है ? सब की झाँखें लिग्रांगमों की ्रोर फिर गयीं। नौजवान का चेहरा कुछ मुरकनाया-सा ज़रूर लग रहा था परन्तु उसने मुस्कराकर कहा-- नहीं बड़ी श्रम्माजी श्रच्छा भला हूँ । मेंग ने चिता से पति की झ्रोर देखकर कहा-- नहीं सुबह से तुम कुछ उदास-से तो हो कया बात है ? मेंग की बात सुन दूसरे भाई श्रौर बहुएँ सभी लिग्मांगमों की श्रोर देखने लगे। रानी ने यह सब देखा परन्तु चुप रहीं। वह जानती थीं कि लिश्रांगमो सुबह से उनकी बात सुनकर ही उदास है। लिश्रांगमो ने श्रपनी उदासी प्रकट हो जाने के श्रपराघ के लिये क्षमा-सी माँगते हुए माँ की श्रोर देखा। माँ ने मुस्कराकर निगाहें नीची कर लीं। रानी वू की नजरें छोटे बेटे त्सेमो की बहू की नज़रों से मिलीं। श्राँखें चार होते ही रानी रुलन की तीखी निगाहें भाँप गईं। रुलन बहुत तेज़ और दूर की कौड़ी लाने वाली थी। भोज प्राय वहू चुप ही रही थी परन्तु देख सब कुछ रही थी । लिगम्रांगमो के चेहरें का भाव माँ-बेटे की नियाहों का मिलना भी उससे बच नहीं पाया थी। त्सेमो का ध्यान इन सब बातों की श्रोर नहीं था। वह था स्वभाव का बेपरवाह भ्रोर भ्रपने में मग्त जीव। वह भोज में ईतनी देर तक बेठने से . उकता गया था। कुर्सी प्र करवटें ले रहा था कि कब उठ पायगा मेहमानों का कोई एक बच्चा बहुत श्रधिक खा गया था। बहुत जोर से बमन कर बेठा। नौकर सफ़ाई करने के लिये परेशानी में दौड़ पड़े । भरे क्या है एक कुत्ते को ले झा न। --कांग सेठानी ने सुकाया।




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