भारतीय दर्शन में प्रामान्यवाद का समीक्षात्मक विवरण | Bhartiya Darshan Me Pramanyavaad Ka Samiikshatmak Vivran

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Bhartiya Darshan Me Pramanyavaad Ka Samiikshatmak Vivran by सतीश चन्द्र दुबे - Satish Chandra Dubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रक्रिया ही. बदल दी। गंगेश की उपलब्धि दर्शन के इतिहास में अद्वितीय है। सम्पूर्ण मध्यकाल के शास्त्रीय इतिहास में ऐसा कोई लेखक नहीं हुआ जिसकी कृति ने इतना प्रभावित किया हो जितना केवल एक. तत््वचिन्तामणि ग्रन्थ ने. प्रभावित किया है। तत्त्वचिंतामणि चार भागों में विभाजित है इसमें चार प्रमाणों का- प्रत्यक्ष अनुमान उपमान और शब्द इन चार खण्डों में विवेचन है। इनकी प्रतिज्ञा ही थी कि प्रमाण तत्त्वमनत्र विविच्यते इसीलिए नव्य-न्याय. को. प्रमाणशास्त्र कहा जाता है।. गंगेश का. अध्ययन प्राचीन न्यायदर्शन तथा मीमांसा के प्रभाकर संम्प्रदाय से प्रभावित था। इनके मुख्य प्रतिद्वन्दी प्रभाकर मीमांसक थे। गंगेश के समय मिथिला में प्रभाकर का विशेष प्रभाव था। तत्त्व-चिन्तामणि पर वर्धमान की प्रकाश तथा पक्षधर मिश्र की आलोक नामक टीकाएँं विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। गंगेश वर्धमान तथा पक्षधर मिश्र के ग्रन्थों पर मिधिला में अनेक टीकाएं लिखी गयी जिनमें नव्य-न्याय की मसिध्विला-शास्वा उत्पन्न हुई है। फिर पक्षधर मिश्र के शिष्य वासुदेव सार्वभौम ने नवद्वीप में लगभग 1600 ई. में नव्य-न्याय की दूसरी शाखा का सूत्रपात किया जिसे नवद्वीप-शास्त्रा कहा. जाता. है।. रघुनाथ शिरोमणि जगदीश तर्कालड्कार तथा गदाधर भट्टाचार्थ इस शाखा के श्रेष्ठ नैयायिक हैं। रघुनाथ शिरोमणि ने तत्त्व चिन्तामणि पर दीधथिति नामक टीका लिखी है। गदाधरभट्टाचार्थ ने इस दीथिति पर जो टीका लिखी है. उसको उन्हीं के नाम पर गदाधरी कहा गया है। जगदीश तकालडकार ने दीथिति पर प्रकाशिका नामक टीका लिखी है जिसे प्राय जागदीशी कहा जाता है। दीथिति जागदीशी और गदाधरी नवद्वीप के नव्य-न्याय के तीन श्रेष्ठ ग्रन्थ हैं।




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