संस्मरण | Sansmaran

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Sansmaran by बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविवर पं० श्रीघर पाठक १ वास्तवमें पद्मकोट पाठकजीकी सर्वोत्तम कृतियोमेसे है बल्कि यों कहना चाहिए कि यदि वे झ्रपने जीवनमे केवल काश्मीर-सुखमा श्रौर पष्मकोटकी ही रचना करते तब भी वे कविता तथा सौन्दर्यके प्रेमियोके लिए चिरस्मस्णीय हो जाते । उस समय पाठकजीकी बातें सुनना हिन्दीके ४० व ( १८८०- १६२० ) के इतिंहासका झव्ययन करना था । पाठकजीने श्रपनी बाल्या- वस्थाकी बहुत-सी बाते सुनाइं । सन्‌ १८७४ की बात है। पाठकजीके हिन्दी-स्कूल कोटलामे इन्सपेक्टर लायड साहब वार्षिक परीक्षा लेने आये । ऊँची दफाश्रोके लडकोॉंको पढनेके लिए खडा किया गया । पाठकजी नीची दफामे थे पर उनको सब डिएटो इन्सपेक्टरने ऊँची दूफाके साथ पढनेको खडा कर दिया । उनके पढनेकी बारी आई तो उन्होंने भूगोलकी पुस्तकमेसे जो थोडी देर पहले ही उन्हें पारितोषिकमे मिली थी पढा-- टाबद चज उस घरतीका नाम है जो चिनाव और केलमके बीचमे है । साहब-- इसका मतलब कह सकता हैं ? पाठकजी-- चिनाव कौ च लयौ श्र मेलमको ज लयौ--चज बनि गयौ । द साहबने मुँहमे उंगली दी । डिप्टी इन्सपेक्टर सब डिएटी इन्सपेक्टर सुर्दारिंस विद्यार्थी तथा द्शंकगणु चकित हुए श्र ग्राम तथा जिले-मरके सुदर्रिसी झ्रासमानमे एक शोर मच गया । यह बात ध्यान देने योग्य है कि पाठकजीने इस पुस्तककों पहले कभी नहीं पढा था और न इस दोद्ञाबका नाम ही कही सुना था । पाठकजी अपने शुरु पूज्य प ० जयरामजीका नाम बड़े सम्मानके साथ लेले थे । मैने उनसे प्राथना की कि श्राप प० जयरामजीके विषयमे मुझे कुछ लिखा दीजिए । उन्होंने कद्दा-- श्रच्छा लिखों श्र निम्नलिखित पंक्तियाँ बोलकर लिखाइं--




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