विश्वासघात | Vishvasghat

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Vishvasghat by श्री गुरुदत्त - Shri Gurudatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्र-पुरुष १७ उनको इस प्रकार रेवा की बाहों से छूटने का यत्न करते देख हँस पड़ी | माँ ने हँसते हुए कहा क्या कर रही हो रेवा दोनों में मनसुदाव मिटा रही हूँ । रेवा ने बाँहिं निकाल दोनों को मुक्त करते हुए कहा माँ श्रब तुम श्रा गई हो लो श्रपने पुत्र और पुत्र-वधु को .| पावंती ने रेवा के मुख पर हाथ रख उसको श्रागे कहने से रोक दिया | रेवा की माँ हँस पड़ी श्रौर पावंती का मुख लज्जा से लाल दो गया | रेवा की माँ ने पावती से उसके मादा-पिता का कुशल-क्षेम पूछना आरम्भ कर दिया । उधर रेवा ने झपने भाई को कहा ैया श्रब तो ठुम खाली हो न ? चुनावों के परिणाम भी निकल गये । बताओ झ्राज पिक्चर देखने ले चलोगे ? यदि तुम्हारी सहेली साथ चलेगी तो (?? जी भाई साहब उसी की बात तो कह रही हूँ । सुक्ते साथ क्या ले जाबेंगे श्राप ? मैं दूघ-पीती बच्ची नहीं हूँ । मैं तो अकेली भी चली जाती हूँ तो क्या बह दूघ-पीती बच्ची है १ हाँ सामाजिक जीवन में । प्तो फिर ले चलू गा । तुम भी साथ चलोगी ( यदि कहो तो ?? प्तो चलो । रेवा सोफा से उठ पड़ी श्रौर माँ से बोली मम्मी इनके लिए. चाय बनवाश्यों और मैं कपड़े बदलकर श्राती हूँ । पुन कपड़ों को कया दुद्मा है १? पयह्द सिनेमा जाने योग्य नहीं हैं | वह उठ चली गई । रेवा की माँ ने भी उठते हुए कहा लॉ मैं अभी चाय बनवाकर लाती हूँ । इस प्रकार चेतनानन्द और पावती श्रकेले रह गए । पक क्षण




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