विद्यापति | Vidhyapati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्द्ध व्यक्तित्व विश्लेषण नवीन पुनर्जागरण का परिणाम था । इसे मूट्ी भर सामन्तों का नहीं एक विशाल जम-ससूह का संरक्षण प्राप्त था । विद्यापति इस नवीन जन-जागरण के चारण हूँ । बैसे तो १४वीं शलान्दी से १६वीं तक का साहित्य अनेक प्रभा- दीप्त व्यक्तियों के समदेत आदविर्भाव से गौरवान्वित हुआ है--वगाल में चण्डी- दास असम में शंक रदेव मध्यप्रदेश में कबीर तुलसी श्ुर राजस्थान में मीराँ गुजरात में नरसी मेहता इस जागरण के सन्देश-वाहक हैं किम्तु विद्यापति का व्यक्तित्व कुछ निराला है। यह सत्य हूँ कि संसार के किसी भी साहित्य में एक साथ इतनी महत्‌ अतिभाएँ एकत्र शायद ही दिखाई पड़ें इनमें सबका व्यक्तिस्व महान है को बड़ छोट कहुत अपराधू किल्‍तु जहाँ तक व्यक्तित्व का सवाल है मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि विद्यापति की तरह स्वच्छन्द गत्वर रोमेण्टिक व्यक्तित्व किसी और कर नहीं था 1 व्यक्तित्व फिसे कहते हैं ? कर्नि के अध्ययन में इस व्यक्तित्व का क्रय महत्व हैं आदि प्रश्नों पर मैं विस्तार से विचार करना सहीं चाहता भौर न तो यहाँ आवश्यक ही हैं किन्तु थोड़े में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि व्यक्तित्व कवि की बहू गुभ है जो अज्ञात रूप से उसके साहित्य को उन तमाम वस्तुलों के लिये जिम्मेदार है जो दूसरों के साहित्य में नहीं मिलती व्यक्तित्व नाना प्रकार की विशेषताओं का बह सजीव पुरूज है जो एक व्यक्ति को हजारों से अलग करता है । व्यक्तित्व बह रासायनिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति की सम्पूर्ण उपलब्धि को बहू बनाती है जो वह है । किसी कवि के व्यक्तित्व का मतलब दो प्रकार से स्पष्ट होता है । उस कवि की आत्माभिव्यक्ति और उसके निमित चरितों सनस्थितियों से उसकी आत्मा की छाथा । एक क्िं या लेखक अपने व्यक्तित्व को अपनी कृति से या तो पूर्ण अन्ग करेगा ये उसमें अर्न्तनिहित कर देगा । लिनतु ब्यन्क्त्व को अलग करके भी उसे अपने चरित्ों के माध्यम से अपने को व्यक्त करना पड़ेगा । इस प्रकार का विवाद वस्तुतः रोमेण्टिक काब्यधारा के साथ ही उपस्थित हुआ । रोमेण्टिक कवि अपने साहित्य में अपने च्यक्तित्व को प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति देता हैं। उदाहरण के लिये फीहिंडण से अपने व्यक्तित्व को अपने घरितों के माध्यम से व्यक्त करने की वस्तु बनाया मानी अरिद्वों के माध्यम से अपने व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी जब कि रोमेण्टिक हगों ने अपने को चरित्र में निक्षिप्त कर दिया । इसी के माधार पर लेखकों में बस्तुनिष्ठ भर ब्यक्तिनिष्ठ दो श्रेणियाँ बस जाती है । प्रथम प्रकार के. लेखक यानी वंस्तुनिष्ठ अपने व्यक्तित्व की मूल विशेषताओं को भिन्न-भिन्न वरित्लों के माध्यम से तटस्थ होकर व्यक्त करते हैं जब कि व्यक्तिनिप्ठ लेखक एक ऐसा क्रे्दीय चेरिव प्रस्तुत करता है जो उसका प्रतिनिधि होदा है जो लेख के मतोभावों को उसी प्रकार स्पष्ट करता है जैसे शीशा दशक के नहरे की हुर रेखा को हूबहू व्यक्त कर दिया करता है। जो थी हो दोनों प्रकार के लेखकों के साहित्य को समझने के लिये उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण आवश्यक हो जाता




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