हिंदी साहित्य के विकास की रूप रेखा | Hindi Sahitya Ke Vikas Ki Roop Rekha

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Hindi Sahitya Ke Vikas Ki Roop Rekha by रामअवध द्विवेदी - Ramawadh Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदि काल ९ ही आध्यात्मिक तत्वों की खोज करने के लिए आदेश दिया गया है । सिद्धों की. दुष्टि में इस सहज उपासना का सबसे अधिक महत्व था। दूसरी कोटि की रचनाएँ वे हैं जिनमें तांत्रिक क्रियाओं और विर्वासों का अधिक उल्लेख है । सिद्धों की वाणी सब कहीं अटपटी है और उनके अर्थ के समझने के लिए सदा प्रयास करना पड़ता है । प्रयत्न करने पर भी कभी-कभी उनकी उलटवासियों का अर्थ स्पष्ट नहीं होता है और इसीलिए उनकी भाषा को संध्या भाषा अथवा संघा भाषा कहा गया है। संध्या भाषा से अभिप्राय है ऐसी भाषा का जिसमें अ्थ पूर्णरूप से प्रकाशित नहीं होता ह। और जिस पर रहस्यात्मकता का झिलसिल परदा पड़ा रहता हो । प्रमुख सिद्धों में कूछ के नाम निम्नलिखित हैं --सरहपां (८ वीं झती ) दावरपा (९ वीं शताब्दी ) लइपा (९ वीं झाती ) भूसकपा (९ वीं झाती ) गो रक्षपा (९ वीं दाती) विरूपा (९वीं दती ) । शुद्ध साहित्यिक दृष्टि से बौद्ध सिद्धों द्वारा रचित साहित्य का महत्व केवल अल्प है किन्तु उनकी कृतियों में भाषा का एक रसा रूप सिलता हैं जिसका घनिष्ठ सम्बन्ध हिन्दी से हैं । उनके द्वारा प्रयुक्त दोहा पदों और उलटवासियों की परम्परा बहुत दिनों तक हिन्दी साहित्य में ्रचलित रही और उनकी अन्तर्मुखीं निर्गुण उपासना का प्रभाव हिन्दी के परवर्ती भक्तिकाव्य पर असंदिग्ध रूप से पड़ा । इस बात को ध्यान में रखते हुए भी उनकी रचनाओं का अध्ययन अत्यन्त समीचीन है । नाथपंथियों का लोकभाषा साहित्य-- नाथपंथ के प्रवत्तेक गोरखनाथ के समय के विषय में बहुत मतभेद है। कुछ _ शछोग इन्हें दसवीं दाताब्दी का मानते हैं तो कूछ लोग इनका काल बारहवीं शताब्दी से छेकर १४ वीं दाताब्दी बताते हैं किन्तु नवीन अनुसन्धान के फलस्वरूप अधि- कांश विद्वान अब यहू मानने लगे हैं कि गोरखनाथ और उनके गुरू मत्स्येन्द्र नाथ का समय नवीं झाती ईसवी के लगभग था । नाथपंथ एक प्रकार से सिद्ध मत का हिन्दू रूप है । बौद्ध सिद्धों की भाँति ही नाथपंथी योगी योग साघना और तन्त्र में गहरी आस्था रखते थे और उनका भी विक्षेष आग्रह सहज जीवन और सहज उपासना पर था । नाथपंथी आध्यात्मिक परम तत्व की खोज घट के अन्दर करते थे । अत मानसिक और शारीरिक शुचिता तथा निष्ठा और एकाग्रता को विदषेष महत्त्व देते थे । गुरु क निर्देश शिष्य के लिए परम सहायक माना जाता था किन्तु शिष्य स्देव गुरु का अनुसरण करने के लिए बाध्य नहीं था । नाथसम्प्रदाय पर व द्शन का भी गहरा प्रभाव पड़ा । शिव को नाथपंथी आदिनाथ मानते हैं और सम्भवत इस कारण भी नाथपंथ में तंत्र का प्राघान्य पाया जाता है । गोरखनाथ की दिक्षा और नाथ मत की यह प्रमुख विशेषता है कि उसमें शुद्ध आंचरण




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