बदलते रूस में | Badalte Rush Me
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.11 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर - Ramkrishna Raghunath Khadilkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ बदलते रूसमें फेलकर वस रही थी । लगभग रे४ मो वर्ष पहले इनमेसे कई टोलियाँ सिन्धु वादीमे मोदनजोदडो और हृडप्पाके अवद्ेघॉपर आकर स्थायी रूपसे बस चुकी थी। लगभग २००० साल पहले उनमेसे सिमेरियन और साइथियन टोलियॉँ यूरोपीय रूसके दक्षिणी पठारपर बस गयी थी । इस प्रकार रूसी-हिन्दी भाई-माई का नारा श्री कऋु.श्वेवका केवल राजनीतिक न होकर ऐतिहासिक तथ्यपर भी प्रमाणित नारा सिद्ध होता है । मूल एक होनेपर भी हिमाल्यरूपी प्राकृतिक कठोर प्रहरी रूस और भारवके बीचमे ऐसा खड़ा था कि दोनों देशोमे मामूली सम्बन्धके अतिरिक्त अधिक घनिष्ठ आवागमन कभी नहीं हो सका था । पास-पास रहनेवाली पर कभी न मिल सकनेवाली दो ऑआखोकी तरह हिमालयने भारत और रूसकों अलग-अलग रखा था । ४०० साल पहले अफनासी निकितन नामक एक रूसी साहसप्रिय यात्री मास्कोमसे चला और नावो पालवाले जहाजों तथा ऊँटोके कारवॉके साथ यात्रा करता ओर अपार दाष्ट सहता इुआ दो साले वम्बईके पास चौल नामक बन्दरगाहमे पहुँचा था। भारत पहुँचनेवाला यह पहला रूसी था । विज्ञान और यन्त्रशिव्पकी प्रगति उन्नीसवीं और बीसवी सदमे दिन दूनी रात चोणुनी गतिसे होने लगी । पर जबतक भारतपर अंग्रेजोंका राज था वे यदद॒ कभी नहीं चाहते थे कि रुस और भारतका किसी भी प्रकार सम्पर्क स्थापित हो । २८ ४-१६की ऋीमियाकी लड़ाईमें वे जानबूझकर इसी उद्देरयसे झामिल झुए थे । १९४७में भारत स्वतन्र हुआ । विज्ञान और यन्त्रद्मत्पकी प्रगतिके युगका वह पूरा लाभ उठाने लगा । फिर भी हिमालय अब भी खडा था | ४ साल पहले भी भारतसे रूस जानेके लिए दवाई जहाजसे वहरीन काहिरा रोम जेनेवा जूरिख प्राग विल्ना होते हुए जाना पडता था । इसमें ७२ घण्टे लग जाते थे । रूस-भारतकी मैत्रीका हाथ जोर मारने लगा । जनसंख्याकों दृष्टिसे चीनक्ले बाद भारतका नन्वर दूसरा है और सोवियट रूसका तीसरा । दो मित्रोके ये बलिष्ठ हाथ इतनी तेजीसे आगे वढ़े कि हिमाल्यकों भी इस सित्रताकों प्रणाम करनेके लिए नीचे झुकना पड़ा और अन्तमें १४ अगस्त सन् १९५८ को दिल्ली-मास्कोके बीच सीधी विमान सर्विस झुरू हो गयी । भारतने विंमानसेवाका राष्ट्रीकरण हो चुका है और दो कारपोरेशन इसकी व्यवस्था करते हैं । इण्डियन एयरलाइन्स देदके अन्दरके वायुमार्गोपर विमान चलाती हे ओर एयर इण्डिया इण्टरनेशनल विदेशी मार्गोपर विमान चलानेकी जिम्मेदारी लिये हुए हैं । भारतीय विमान अब पूर्वमें सिगापुर जकार्ता डारविन सिडनी बंकाक हांगकांग टोकियोतक पश्चिमम काहिरा दसिदक बेरूत) रोम) जूरिख) जेनेवा प्राग पेरिस डुसेलडर्फ और लन्दनतक तथा दक्षिण-पश्चिममे कराची) अदन नेरोवीतक ओर अब १४
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