विचार धारा | Vichar Dhara

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vichar Dhara by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

Add Infomation AboutDheerendra Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दि . विचार-घारों उद्दत कर दिये हैं । कुछ ने उनका सारांश दे दिया है । एक प्रकार से मध्यदेश के विकास की अंतिम अवस्था बौद्ध काल में बीत चुकी थी श्र अब उसके संकुचित होने के दिन आरा रहे थे | देशों के पुराने नाम श्ब मुलाए जा रहे थे श्रौर उनका स्थान धीरे-धीरे नये नाम ले रहे थे । पूर्व से हट कर श्रब राजनीतिक शक्ति .का केंद्र पश्चिम की ओर झा रहा था । पाटलिपुत्र का स्थान कन्नौज ने लें लिंया था । मध्यदेश की सीमा का पूर्व में कम हो जाने का एक यह भी कारण हो सकता है । साकंणडेय पुराण में विदेह व मगध को मध्यदेश में नहीं गिना है । इसके श्रनुसार कोशल और काशी के लोगों तक ही मध्यदेश माना गया है । यह घटने की पहली सीढ़ी है | बृहृत्संहिता में काशी श्रौर कोशल को भी मध्यदेश के बाहर कर दिया है। वराइमिहिर की बृदत्संहिता ( संवत्‌ ६४४ ) का बणन अधिक प्रसिद्ध और पूण है । ज्योतिष के संबंध में देशों पर ग्रहों के प्रभाव का वणुन करने के लिये भारत के देशों का विस्तृत बृत्तांत बृहत्संहिता के चोदेहवें अध्याय में दिया है। इसके श्रनुसार भारतवर्ष के देश ( श्रार्यावत्त में नहीं ) मध्य प्राकू इत्यादि भागों में विभक्त हैं । मध्यदेश की सूची में ये नाम प्रसिद्ध हैं--कुरु पंचाल मत्स्य शुरसेन और वत्स | कुछ श्रौर नाम भी दिए हैं किंतु वे स्पष्ट नहीं हैं । वत्स देश की राजधानी प्रसिद्ध नगरी कौशाम्बी थी जो प्रयाग से ३० मील पश्चिम में बसी थी । श्रतः बृहत्वंहिता के मध्यदेश की सीमा पूव में मनुस्मृति के समान लगभग प्रयाग तक ही पहुँचती है यद्यपि बृहत्संहिता में साकेत नगरी को मध्यदेश में गिना है किंतु काशी गौर कोशल के लोगों की गणुना स्पष्ट रूप से पूव॑ के लोगों मं की है । संस्कृत के न नल ता पाए पाप कला न ब्यरतपिय कया परसत तप लंका बर्मा स्याम कबोज चंपा जावा व अन्य टापू मध्य एशिया चौन . कोरिया भ्रनाम तिबत झौर जापान | (१) न्रिकॉड रोक २ १८६ | ऑअभिघान चिंतामखि ९५१५ वाँ श्लोक । ब्रमरकोश ९ १ ७ । (९) राजशेखर का वणन देखो पत्रिका भाग ४ पृष्ठ १०-११ | .. (३) साकंणढय पुराण ५७ दे३ | (8) बृहृत्संहिता में चाए भूगोलसंबंधी शब्दों को सूची के लिये देखिए इं० एं० १८९३ पृष्ठ १६० | के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now