अन्तरात्मा भाग - १ | Antaratma Bhag - 1

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Antaratma Bhag - 1 by स्वामी रामतीर्थ - Swami Ramtirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र स्वामी. रामतीथ होती थीं । श्रनेक साधारण मन इस दर्ज का झ्यावेश अनुभव करते थे कि उन्दे डपनी मानसिक शक्ति में वृद्धि प्रतीत होती थी | उनके एक अमेरिकन मित्र ने उनके देह-त्याग पर लिखक को नीचे दिया पत्र लिखा था । इसमें उनका वर्णन ठीक वेसा दी इु्ा है जता फि वे हम लोगों के लिये थे। आर इस कारण से उसका यहां उद्धत करना उचित होगा । ग्माषा के उदासीन व संकीण शब्दों में जिस बात को ग्रकट करना झरति कठिन है उसे व्यक्त करने की जब में चेष्टा करता हूँ तो शब्द मरा साथ नहीं देते | ) ८ राम की माषा मघुर निर्दोप बालक की पक्षियो पुष्पो बहती नदी पेड को हिलती हुई डालो सूर्य चन्द्रमा और नक्षवा की भाषा थी | संतार और मनुष्यों के बाहरी दिखावे के तले उनकी भाषा बहती थी | ससमुद्रो श्रोर महाद्वीपी खेतों श्र तृणो तथा वज्ञों की जड़ों के नीचे से गहरा बढ़ता हुश्रा उनका जीवन प्रकृति म जा मिलता था नहीं नहीं बल्कि प्रकृति ही का जीवन हो जाता था । उनकी भाषा मनुष्यों के चुद्र विचारों श्र स्वप्नों के भीतर तक प्रवेश करती थी | उस ३िलक्ण मधुर तान को सुनने वाले कान कितने थोड़े हैं । उन्होंने उसे सुना उस पर मल किया उसका दम भरा उसकी डित्ता दी श्रौर उनकी समग्र झात्मा उसके गहरे रंग से रंगी हुई थी। वे ऐसे दव-दूत वा पेगम्बर वा धर्म-प्रवर्तक ( ए1655086&7 ) ये कि जिनके अन्दर श्रानन्द परिपण था | .. ऐ मुक्त झ्ात्मा ऐ आत्मा जिसका कि शरीर से नाता परा हो




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