भोजपुरी लोकगाथा | Bhojpurii Lokgaathaa

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Bhojpurii Lokgaathaa by सत्यव्रत सिन्हा - Satyvrat Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के प्रंगों में देख सकते हूं। प्रसिद्ध सहाकाव्यों तथा नाठकों में लोकसाहित्य की सामग्री का विभिन्न रूपों में समावेश हुमा हैं । कथासरित्सागर वैताल पचीसी इत्यादि में वर्णित कथाएं भ्रक्षिकांदा में लोककथाशों के शुद्ध रूप हैं । प्रसिद्ध महा- काव्यों--रामायण श्रौर सहाभारत इत्यादि लोकगाथाओं से ही उद्भूत हैं । नाटकों के हल्लीश रासक प्रेप्नण थाण भाणिका श्रीगदित इत्यादि प्रकार लोकनाट्य की परम्परा से ही लिए गए हैँ । काव्यगत शैलियों में लोकसाहित्य ने अ्रमूल्य योग दिया है । हिन्दी के प्रसिद्ध चारण संत एवं भक्त कवियों ने लोक- साहित्य में प्रचलित अ्रनेक शैलियों को श्रपने दिष्ट एवं विचार-प्रवण साहित्य में स्थान दिया है । इन कवियों ने रासो चांचर हिंडोला कहरवा भूमर बरवे सोहर मंगल बली तथा बिरुहली इत्यादि लोकगीतों की शेलियों को ग्रहण किया हूं । भरत इससे यह स्पष्ट होता है कि लोकसाहित्य का क्षेत्र किसी भी प्रकार सीमित नहीं हे यहाँ तक कि शझ्राज के गीत लिरिक युग में भी लोकगीतों की रैलियाँ परिलक्षित होती हैं । वास्तव में यह विषय लोकसाहित्य भ्रौर दिष्ट साहित्य का झन्योन्य सम्बन्ध अत्यन्त रोचक हूै। प्रस्तुत प्रबन्ध की सीमा को देखते हुए इस पर सविस्तार विचार करना दाक्य नहीं । वस्तुत यह एक पृथक प्रबन्ध का विषय है ।




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