रसिक अनन्य माल | Rasik Ananya Mal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १०.) रसिक झनय माल की प्राप्त होनें वाली लगभग सभी प्रतिया में आरम्भ में थी हंत-चरिच्र लग रहा है जो महात्मा उत्तमदास जी की रचना है । उत्तमदास जी से ररिक झ्नस्य माल में सम्प्रदाय के ऑायाचार्य का चरित्र न देखकर उसे ग्रपनी ओर से जोड़ दिया है झ्ौर साथ ही भगवत मुदितजी कृत ग्रन्थ में दिये हुए रसिकों के चरित्रों का संक्षेप करके श्रपनी रचना में दे दिया है । इससे यह भ्रम होता है कि हिंत-चरित्र भी मगवतत मुदितजी का लिखा हुआ है । रसिक श्तन्य माल में रचना-काल नहीं दिया हु है किन्तु इस ग्रन्थ में जैसा हुम ऊपर देख चुके हैं श्री हिवाचार्य के प्रछौच श्री दामोदरचन्द्र गोस्वामी के शिष्य-प्रशिष्यों की कथा वरशित है अतः उक्त गोस्वामी जी के जीवन के अन्तिम वर्षों में या उनके निकुझ्न-वास (सें० १७१४) के थोड़े दिन वाद इस ग्रन्थ की रचना होने का अनुमात होता है । उपर्यक्त तथ्यों के प्रकाश में भगवत मुदितजी तथा रसिक- ्रनत्य साल सम्बन्धी निष्कर्ष इस प्रकार हैं १. भगवत मुदितजी गौड़ीय झिष्य-परम्परा के महात्मा थे श्रौर राघावल्लभीय सम्प्रदाय में दीक्षित नहीं थे । २. उनके पिता का नाम श्रो माधो मुदित आर गुरु का नाम थी इरिदासजी था रे. वे विक्रम की सचहुवीं दाती के उत्तराधे से लेकर अठारहवीं शती के श्रारम्मभिक दशकों तक विद्यमान थे । ४... रसिक झनन्य माल की रचना सं० १७०७ श्र १७२० के मध्य में हुई थी। ५... हित-चरित्र श्र सिवक-चरित्र नामक स्वतन्त्र ग्रस्थों की रचना उनके द्वारा नहीं हुई । ६-. उनके द्वारा रचित ग्रन्थ केवल दो है श्री वृन्दावन महिमामृत के एक दातक का बज-माषा काव्यानुवाद-ग्ौर रसिक अनन्य माल १. इते रसिक की परचई भगवत सुदित बखानि । दिग्दर्शनवत एक ढाँ उत्तम कीन्हें भ्रानि ॥ उत्तमदासजी २- श्री ललिताचरण गोस्वामी रचित श्रीहित हरिवंश गोस्वामी सम्प्रदाय भ्रौर साहित्य में भी लगभग यहीं काल स्थिर किया राय है या है । कप कप कर पे. कि न यम पद कक




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