Ranaangan by माधव मोहोलकर - Madhav Moholakarविश्राम बेडेकर - Vishram Bedekar

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विश्राम बेडेकर - Vishram Bedekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन्दरगाह डूब गया । बैण्ड के मधुर स्वर गूँज उठे । यात्रियों की फिर बिदाइयाँ फिर रुमालों का हिलाया जाना बोट से किनारे पर फेके हुए हार और गुलदस्ते उन की वर्षा आँखों मे आँसु और हंसते चेहरो की बिदाइयाँ बोट हिली । मुझ से ऊपर देखा नहीं जाता था । उस कोलाहल से मेरा दम घुटने लगा । बेंचारी गरीब बेचारी हरा | में बिस्तरे पर पडा हूँ । बीमार नही हूँ । छेकित उठा नहीं जाता । दाक्ति ही नहीं । खिडकी में से झुक कर देखता हूँ । शाम हो गयी है । एम्पायर होटछ के नीचे का चौराहा । बम्बई मे सब से बडा । वहीं सब इमारतें । लोगो का भीडभडक्का । ट्रासे बसें मोटरें । तमाम वहीं कोलाहल । सब दाहर याद हो भाते है । लन्दन पैरिस बेनिस नेपल्स । मेरा एक मित्र हूैं। उस मे एक अजीब पागलपत था । बात करते-करते बीच मे ही रुक जाता । शून्य में देखता रहता । में पूछता जग्गू क्या सोच रहे हो उस का स्वर आईकल हो जाता । कहता तुम हुँसोगे । अब चार बजे है । मेरे मन में एकाएक कल्पना आती है । इस समय कलकत्ता मेल नागपुर होगी दिल्‍ली एक्सप्रेस झाँसी पजाब मेल दिल्‍ली स्टेशन पर और फ्रण्टियर नागदा । मद्रास मेल अभी शोलापुर से छूठेगी । मुझे हँसी आती । लेकिन उस का मन लगातार भटकता रहता । हम पतग उडाते । उस की कल्पना उडान भरती । पतग बहुत ऊची जानी चाहिए । उस पर चढ़ कर नीचे देखा जाये तो कितना विशाल प्रदेश एक साथ दिखाई देगा ? एक ही समय सभी गाडियो मे सवार हो कर उस का मन हिन्दुस्तान भर में भटकता । कितना स्वाभाविक है यह मे भाज समझ सकता हूँ। वाम हो गयी है न ? लन्दन में अब बारह बजे है । इस समय में पिकैडिली मे होता । और भाघे घण्टे बाद लच का समय । काम पर से आता--छैफ्ट्स्बरी ऐवेन्यु होता पिकैडिली । नॉर्थ रीजेण्ट स्ट्रीट से मुड कर वाइन स्ट्रीट जाता । वहाँ एक मेरा प्रिय उपाहारगृह था । साथ मेरे ही कॉलेज की एक लडकी । में उस से प्रेम नही करता था । वह भी मुझ से नहीं करती थी । लेकिन संग-साथ कितना सुखद होता पिकंडिली के बीचोबीच एक फब्वारा है । उस पर कामदेव की एक सुन्दर प्रतिमा है । हम रोज़ उस फब्वारे की सीढियो थर खडे रहते । श्२ रणांगण




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