कर्बला | Karbala

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Book Image : कर्बला  - Karbala

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रेप ) हैं । ये सच उसकी द्याशीलता और उदारता के प्रमाण हैं । यज्ञीद ने मेरे नाम फरमान भेजा है कि में तुम्दारे ऊपर विशेष कृपा-दष्टि करू आर जिसे एक दीनार वृत्ति मिलती हे उसकी बृत्ति सो दीनार कर दूँ। इसो तरद वेतन में भी बद्धि कर दूं ओर तुम्हें उसके श्र हुसैन से लड़ने के लिये भेज यदि तुम अपनी उन्नति और ह्वांद्ध चाहते हा तो तुरन्त तैयार हो जाओ्यो । बिलम्ब करने से काम बिगढ़ जायगा । यह व्याख्यान सुनते ही स्वाथ॑ के मतबाले नेता लोग धर्माधमें के विचार को तिलांजलि देकर समर भूमि में चलने की तैयारी करने लगे । शिमर ने चार हजार सवार जमा किये और वह बिन-साद से जा मिला । रिकाब ने दो हज्ञार दसीन ने चार हज़ार मसायर ने तीन इज़ार और झन्य एक सरदार ने दो दृज्ञार योद्धा जमा किये । सब-के-सब दल-बल साजकर कबला को चले । उमर-बिन-साद के पास अब पूरे २९ सदर सैनिक हो गये । केसी दिल्लगी है कि ७९ अआदमियों को परास्त करने के लिए इतनी बड़ी सेना खड़ी हो जाय उन बहत्तर आदमियों में भी कितने ही बालक ओर कितने दी बद्ध थे । फिर प्यास ने सभी को अधमरा कर रखा था । किन्तु शत्रुओं ने अवस्था को भली-माँतिं समझकर यह तैयारी की थी । हुसैन की शक्ति न्याय ओर सत्य की शक्ति थी । यह यज्ीद और हुसैन का संग्राम न था। यह इस्लाम धार्मिक जन-सत्ता का पू्ं कालिक इस्लाम की राज-सत्ता से संघष था । हुसैन उन सब व्यवस्था्छों के पक्त में थे जिनका हजरत सोहस्मद द्वारा प्रादुभोब हुआ था मगर यज्ञीद उन सभी बातों का प्रतिपक्षी था । दैवयोग से इस समय अधम ने धर्म को पैरों-तले दबा लिया था पर यह अवस्था एक चण में परिवर्तित हो सकती थी आर इसके लक्षण भी प्रकट होने लगे थे। बहुतेरे सैनिक जाने को तो चले जाते थे परन्तु अधम के बिचार से सेना से भाग आते थे। जब आओबेदुज्ञाद को यह बात मालूम हुई तो उसने कई निरीक्षक नियुक्त किये । उनका काम यही था कि




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