जड़ की बात | Jad Ki Baath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जड़ की बात रद है । पर यह भी निदिचित हे कि इस तरह वह भश्रपनी कुर्सी को कलकित करते हूं । भेद पर बनी व्यवस्था टिकने वाली नहीं । श्रादमी के भीतर स्वाथें हे तो निस्वाथंता भी है । यानी स्वार्थी आदमी में ही यह प्रतीति निवास करती हू कि दूसरे की हानि पर पलने वाला स्वाधे मेरा सच्चा स्वाथें नही है । सच्चा स्वाथ मेरा ही वह हे जो दूसरे के स्वाथें के साथ अभिन्न है । इस तरह यह हालत बहुत दिनो तक रहनेवाली नहीं हैं कि लोग सडक के किनारे पड़े जीते ककाल को देखते हुए निकल जाय। जल्दी वह समय श्रा जायगा कि जब अपने व्यवस्थापको से हम पुछेगे कि क्यो तुमसे इतनी चूक हुई कि वह झादमी सडक पर पड़ा हुआ है तुम हकूमत के लिए नही हो व्यवस्था के लिए हो । तुमको हाथ का हुसर तो कोई शभ्राता नहीं था तुमको और काम का न जान कर यह काम सौपा गया है। पर तुममे यह पुरानी बू झबतक मौजूद हे कि तुम श्रपने को अफसर समको आर उसमे भूल जाश्ो ? ध्यान रहे कि तुम सेवक हो तुम मालिक के विश्वास को खो नहीं सकते । जो काम तुम्हे सौपा गया हे उसमे चूकते हो तो जाश्रो अपना रास्ता देखो । आप सोचिए कि जब लडाई हो रही हो तो बारूद को बर्बाद करने वाला झादमी कितना गुनहगार हे। ईदवर की सृष्टि मे हर श्रादमी बारूद के गोले के मानिन्द हे । उसे बर्बाद होने दिया जा सकता हूं उससे मौत का काम लिया जा सकता है या उससे जिन्दगी का कोम लिया जा सकता है । मनुष्य जाति के व्यवस्थापको का न्याय एक दिन इसी तराजू पर किया जायगा कि उन्होने ईश्वर की पूजी का क्या बनाया कितना खोया कितना कमाया श्रादमी भ्रादमी में जितनी एकता निस्वाथंता बढ़ेगी वह कमाई है । जितना उनमे भ्रनेक्य और स्वाथें बढेगा वह हानि हू । लानत में देखा जायगा कि श्रादमी का व्यवस्थापको ने क्या उपयोग किया है कितनों की सम्भावनाए नष्ट होने दी या प्रस्फुटित होने दी? कितनों को ईदवर की समता में खिलने दिया ? और कितनों को अवरुद्ध




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