अवध की लूट | Awadh Ki Loot

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Book Image : अवध की लूट  - Awadh Ki Loot

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मेजर आर. डब्ल्यू. वर्ड - Mejar R. W. Ward

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राजेन्द्र पाण्डेय - Rajendra Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नल श् इक ननगय अवघ में ऐसा कभी नहीं हुआ था । कंपनी इन बलवाइयों और डाकुओं को प्रश्नय देती थी । अवध में १० वर्षीय नवाबी शासन में लखनऊ में ८ ००० आदमी बाहर से आकर बसे कितु कंपनी का शासन होते ही एक. वर्ष में ४ ००० व्यक्ति भखों मरने के कारण . लखनऊ छोड़ कर भाग गये । व अवध की ५० लाख की जनसंख्या में सन्‌ १८४८ से १८५४ तक लगभग प्रतिवर्ष १६ ००० नर-हत्याएँ तथा लगभग २०० डाके पड़े । इसके विपरीत कंपनी के काल में इससे कहीं अधिक अपराध हुए । कंपनी का शासन बहुत अधिक खर्चीछा था । मज़ा यहू कि सब नवाब का ही धन उड़ रहा था । यह शासन जनता के लिए सुविधाजनक एवं लाभदायक न था । अवध ब्लू बुक के अनुसार कंपनी की शासन-प्रणाली बडी दोष- पुण थी । कलेक्टर और सिविल जज में बहुधा मतभेद हो जाता था । जनता बहुत पीड़ित थी । बहुघा हिंदू-मुस्लिम दंगे हो जाते थे । किंतु वाजिद अली दाह के शासन में केवल अयोध्या म हनुमान गढ़ी पर १८५५ में दंगा हुआ । जब नवाब की सेना में कुछ बढ़ती होने लगती तो रेजिडेंट बाधा उपस्थित करता था कि किसी प्रकार भी ३५ ००० से अधिक सेनिक न हों । वाजिद अली शाह की सबसे बड़ी इच्छा यह थी कि सेना का पुनःसंगठन हो किंतु वैसा न करने के छिए उसे विवदा किया गया । गान प्रथा में भी कंपनी किसी प्रकार का सुधार नहीं करनें देना चाहती थी । पर के सत्य कक हस्तवाप के कारण नवाय की राजनीतिक स्ववंतता सेशन के अत्यधिक हस्तक्षेप के कारण नवाब को राजनीतिक स्वतंत्रता ः _न.थी-+ अतः उस क्षेत्र में वह ही रहा परंतु सांस्कृतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में उसने देश की बड़ी सेवा की । लखनऊ सम्पन्नता संस्कृति भाषा कला चित्रकला साहित्य में अग्रगण्य था । पत्रकारिता की कला की काफी उन्नति हुई । लखनऊ में एक वेघशाला भी थी। इसका अफसर बहुधा अंग्रेज होता था जो १७०० रुपया मासिक वेतन पाता. था । समय बताने के लिए यहाँ तोप दगती थी । गणित एवं ज्योतिष संबंधी अनुसंघानकार्य होता था । इन विषयों पर २१ अंग्रेज़ी पुस्तकों का उर्द में अनवाद कराया गया । इसके साथ ही एक वेघशाला में चुम्बक पत्थर ढगाया गया । इस पर ६ ००० रुपया वार्षिक व्यय तथा २०० रुपया मासिक वेतन नवाब से मिलता था । बादशाह ने... जनहित के लिएँ सरायें पुलिस चौकियाँ तथा कएँ आदि बनवाये । नवाब वाजिद अली शाह एक अच्छा शासक था किन्तु अंग्रेजों ने प्रत्यक्ष रूप से इसे कमी स्वीकार नहीं किया । लार्ड डलहौज़ी को अवध का अपहरण करने का कोई बहाना नहीं मिल रहा था क्योंकि नवाब निःसंतान भी न था जिससे गोद न लेने का प्रदन उठा सकता और नवाब का स्वास्थ्य भी अधिक खराब न था। अत लाई डलहौज़ी ने . एक स्मृतिपत्र निकाला जिसके अनुसार १८३७ की संघि को ठकराते हुए यह प्रस्ताव .




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