तंत्र लोक | Tantraloka
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.41 MB
कुल पष्ठ :
273
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्लोक ८ नवसमाहिकम् । ११ इति । तदयमेव का्यकारण भावों - यदन्तः परिस्फुरत एवाधस्यान्तबाहिष्करणोभयवेद्यत्वसाभास्यते इति यदुक्तम यद्सत्तदसद्युक्ता नासत सत्स्व भावता | सतो पि न पुनः सत्तालामे नार्थोफथ चोच्यते ॥ कार्यकारणता लोके सान्तर्विपरिविर्तिन । उभयेन्द्रियवेद्यट्वं तर्य कस्यापि शक्तितः ॥? इति न चान्तरवस्थितस्याथेस्य बहिरवभासनं नामा- पूर्व किचित् अपि तु अभेदारूयातिमात्रम इति न क- शिद्दोष ततश्व युक्तमुक्त॑ स्वातन्त्यभाकू परः शिव स्वंभावानां वस्तुतः कता इति ॥ ननु अस्त्पेव॑ बीजाडकुरादो सद्धटादो तु नायं वृत्तान्त तत्र हि दृश्यते एव कुम्भकारः कता इति किमदेन कत्रेन्तरेश परिकल्पितेन ? इत्याशड्क्याह अअस्वतनः स्य कर्तत्वं नहि जातूपपद्यते ॥ ८ ॥ कुम्भकारो हि न स्वेच्छामात्रेण घट जनयेत् अपितु सदादि झपेक्षय न चाचेतना स्दादयस्तदि- च्छामचुरोध्येरन् एवं हि पटसंपादनेच्छामपि कि
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