मृत्युंजय | Mrityunjaya

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Mrityunjaya by श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला झंक १७ जो भाषा पढ़कर आप साहब बने हैं जिसके बल से अपने ही लोगों पर आतंक जमाते हैं उस भाषा में अवश्य सुना होगा । अंग्रेजी में मृत्यु का देवता जहाँ रहता है उसका कुछ नाम तो होगा ही । दूसरा-तीसरा ओ हो नरक का नाम है यह किस भाषा का ? चौथा ठीक नरक का तो नहीं यमराज के लेखा-जोखा का उनके निवास और निणंय का जो स्थान है वह बम्बई से कई गुना बड़ा है । वह कहीं नरक गौर स्वर्ग के बीच में होगा । जहाँ से दोनों की व्यवस्था हो सके । अपने साथ के लोगीं के साथ मन्द हँसी । पर आप लोग तो अंग्रेजों के पुरखे जहाँ गये होंगे वहाँ जायेंगे । यहाँ तो हमारे जेसे अपड़े रूढ़िवादी रहेंगे । पहला भरे यह सब पण्डितों की मुल्लों की पादरियों की करतूत है हम कहीं नहीं जायेंगे । चौथा कहीं तो जायेंगे । यहाँ बराबर बने रहने के लिए आप नहीं भाये यह इतना आप भी जानते हैं । दूसरा अच्छा महाराज नमस्कार । हम लोग किसी कायं से चले थे । तीनों चलना चाहते हैं । मकान के बीच का द्वार खोलकर सरदार पटेल निकलते हैं और बाहर खम्भा पकड़ कर सिर भुका लेते हैं । महात्मा गांधी द्वार पर खड़े हो जाते हैं । चौथा मच्छा अवसर है आप लोग भी चलें दर्शन कर लें । महात्मा का द्वार सबके लिए खुला है । किसी को रोक नहीं है । वे तोनों जल्दी से निकल जाते है । सकल पदारथ एहि जग माहीं करम हीन नर पावत नाहीं ।




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