भोजन तथा छूतछात | Bhojan Tathaa Chhutachhaat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र५ ) प्रश्न--यह सब तो बहुत ठीक और युक्ति संगत है। अच्छा अब यह बताइये कि आयों ( हिन्दुओं ) को मय मां का सेचन करना चाहिये कि नहीं । उत्तर--हरगिज़ नहीं । मय मांस मनुष्यमांत्र के लिए अभध्य पदार्थ हैं । सभी शास्त्रों में मय मांस सेवन का निषेत्र किया गया है । मनुस्छ्ति रामायण महाभारत आदि में तो ऋषियों ने बार २ मद्य मांस की निन्दा की है । मजुष्यों के दांत मुख आमाद्यय आंते आदि की बनावट भी हर आदि से भिन्न हे जिससे स्पप्ट है कि मांस मनुष्य (का स्थाभाधिक भोजन नहीं है । मांस देर में हज़म होता है और क्ररता व॑ क्रोध को बल को नहीं 1 बढ़ाना हैं । यदि मजुप्य को घत दुग्ध पर्याप्त मात्रा में मिलते रहें तो वह चिरजीवी नीरोग और बलवान होगा उसके बल का मुकाबला मांसाहारी लोग नहीं कर सकते । आयों में पहिठे यद्द अभक्ष्य चस्तु नहीं खाई जाती थी पर जब से मुसरमान इंसाइयों का इस देश पर राज्य हुआ तभी से यद्द कुप्रथा अनेक हिन्दुओं में भी आगई है । सुरा मत्स्या पशोमांस मासबं कुशरो दनम्‌ घूतें प्रचतिंत॑ चक्र नेतद्व देघु विद्यते । महा झा. रद अ. बहुत से छोग कहा करते हैं कि प्रायीन आर्य मांस खाते थे तथा वेदों में भी मांस भक्षण की आना है परन्तु वेदों के अद्वितीय मर्मज्ञ पण्डित श्री भीष्मपितामद्द कदवे दे कि मछली




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