आर्य्य पथिक | Aarya Pathik

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Aarya Pathik by मुन्शीराम जिज्ञासु - Munshiram Jigyasuलेखराम - Lekhram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(2१३) नहीं पाते । सत्र र अब पहिले की निसबत कुछ सुधार पर झा गए हैं । ८ दिसम्बर १८७३ इ० । मुन्शी साहेब लेखराम झब तक अपनी जिहालत पर कमर वस्ता हैं । और तो सब कुछ रखते हैं मगर अकल ( बुद्धि ) । हाय झफसोस अगर यह भी होता तो श्रन्दर बाहर आदमी होते । लेखराम के सम्बन्धी फ़कीरचन्द भी मुन्शीतुलसीदास के पास ही पढ़ते थे । उन की योग्यता की प्रशंसा करते हुवे १८ फरवरी सन्‌ १८७४ को उक्त मुन्शीजी ने लिखा था-- लेखराम साहेब भी लेख तथा वक्तृत्वशक्ति में उन से कम नहीं किन्तु तनिक बुद्धि की कसर है । यह बार बार बुद्धि की कसर का जिक्र क्यों आता है और इस से अध्यापक का क्या मतलब है ? आगे चल कर कुछ स्पष्ट दो जाता है । २४ झगस्त स० १८७४-- लेखराम की प्रकृति के बदलने की ओर हादिक ध्यान दीजिएगा । विद्या से विनय उत्तम है और अकल शकल से...... लेखराम की प्रकृति में दास भाव पहिले से ही न था स्वतन्त्रता कूट कूट कर बाल बाल में भरी हुई थी । यददी कारण था हि कई वार छात्रहति तथा पारितोषिक पाने पर भी वह कभी कभी सरकारी शिक्षा




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