आर्य्य पथिक | Aarya Pathik
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.58 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
मुन्शीराम जिज्ञासु - Munshiram Jigyasu
No Information available about मुन्शीराम जिज्ञासु - Munshiram Jigyasu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(2१३) नहीं पाते । सत्र र अब पहिले की निसबत कुछ सुधार पर झा गए हैं । ८ दिसम्बर १८७३ इ० । मुन्शी साहेब लेखराम झब तक अपनी जिहालत पर कमर वस्ता हैं । और तो सब कुछ रखते हैं मगर अकल ( बुद्धि ) । हाय झफसोस अगर यह भी होता तो श्रन्दर बाहर आदमी होते । लेखराम के सम्बन्धी फ़कीरचन्द भी मुन्शीतुलसीदास के पास ही पढ़ते थे । उन की योग्यता की प्रशंसा करते हुवे १८ फरवरी सन् १८७४ को उक्त मुन्शीजी ने लिखा था-- लेखराम साहेब भी लेख तथा वक्तृत्वशक्ति में उन से कम नहीं किन्तु तनिक बुद्धि की कसर है । यह बार बार बुद्धि की कसर का जिक्र क्यों आता है और इस से अध्यापक का क्या मतलब है ? आगे चल कर कुछ स्पष्ट दो जाता है । २४ झगस्त स० १८७४-- लेखराम की प्रकृति के बदलने की ओर हादिक ध्यान दीजिएगा । विद्या से विनय उत्तम है और अकल शकल से...... लेखराम की प्रकृति में दास भाव पहिले से ही न था स्वतन्त्रता कूट कूट कर बाल बाल में भरी हुई थी । यददी कारण था हि कई वार छात्रहति तथा पारितोषिक पाने पर भी वह कभी कभी सरकारी शिक्षा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...