विवेकानन्द साहित्य खंड 5 | Vivekananda Sahitya Khand 5

Vivekananda Sahitya Khand 5 by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वियेकानन्द साहित्य ० हिंतकारी और उन्नायक अन्य कोई अध्ययन नहीं है। जीवन भर उसने मुझे शान्ति प्रदान की है और मरने पर भी बही मुझे शान्ति प्रदान करेगा। आगे चलकर वे ही जर्मन ऋषि यह भविष्यवाणी कर गये हैं यूनानी साहित्य के पुनरुत्यान से संसार के चिन्तन में जो क्रान्ति हुई थी शीघ्र ही विचार-जगत्‌ में उससे भी दाक्ति- दाली और दिगन्तव्यापी क्राम्ति का विश्व साक्षी होने वाला है। आज उनकी वह भविष्यवाणी सत्य हो रही है। जो लोग आँखें खोले हुए हैं जो पाइचात्य जगत की विभिन्न राष्ट्रों के मनोभावों को समझते हैं जो विचारशील हैं तथा जिन्होंने भिन्न भिन्न राष्ट्रों के विषय में विशेष रूप से अध्ययन किया है वे देख पायेंगे कि भार- तीय चिन्तन के इस धीर और अविराम प्रवाह के सहारे संसार के भावों व्यवहारों पद्धतियों और साहित्य में कितना बड़ा परिवर्तन हो रहा है। हाँ भारतीय प्रचार की अपनी विद्ेषता है इस विषय में मैं तुम लोगों को पहले ही संकेत कर चुका हुँ। हमने कभी बन्दूक या तलवार के सहारे अपने विचारों का प्रचार नहीं किया । यदि अंग्रेज़ी भाषा में ऐसा कोई शब्द है जिसके द्वारा संसार को भारत का दान प्रकट किया जाय--यदि अंग्रेज़ी भाषा में कोई ऐसा दाब्द है जिसके द्वारा मानव जाति पर भारतीय साहित्य का प्रभाव व्यक्त किया नाय तो वह यही एक मात्र दब्द सम्मोहन ( £85071200 ) है। यह सम्मोहिनी शक्ति वैसी नहीं है जिसके द्वारा मनुष्य एकाएक मोहित हो जाता है वरन्‌ यह ठीक उसके विपरीत है यह घीरे धीरे बिना कुछ मालम हुए मानो तुम्हारे मन पर अपना आकषेण डालती है। बहुतों को भारतीय विचार भारतीय प्रथा भारतीय आचार- व्यवहार भारतीय दशेन और भारतीय साहित्य पहले पहल कुछ प्रतिषेघक से मालूम होते हैं परन्तु यदि वे घेयंपूवंक उक्त विषयों का विवेचन करें मन लगाकर अध्ययन करें और इन तत्त्वों में निहित महान सिद्धान्तों का परिचय प्राप्त करे तो फलस्व- रूप निन्यानबे प्रतिशत लोग आकर्षित होकर उनसे विमुग्ध हो जायंगे। सबेरे के समय गिरनेवाली कोमल ओस न तो किसी की आँखों से दिखायी देती है और न उसके गिरने से कोई आवाज़ ही कानों को सुनायी पड़ती है ठीक उसी के समान यह शान्त सहिष्णु सर्वसह धर्मप्राण जाति धीर और मौन होने पर भी विचार साम्राज्य मे अपना जबरदस्त प्रभाव डालती जा रही है। प्राचीन इतिहास का पुनरभिनय फिर से आरम्भ हो गया है। कारण आज जब कि आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा बारम्बार होनेवाले आधातों से आपात-सुदुढ़ तथा दुर्भ्य घम॑-विदवास की जड़े तक हिल रही हैं जब कि मनुष्य जाति के भिन्न भिन्न अंशों को अपने अनुयायी कहने वाले विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों का खास दावा शून्य में पयंवसित हो हवा में मिलता जा रहा है जब कि आधुनिक पुरा-




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