रामाश्वमेध उत्तर रामायण | Ramashwamedh Uttar Ramayan

Ramashwamedh Uttar Ramayan by डॉ. विद्याधर मिश्र - Dr. Vidyadhar Mishraप्रो. इन्द्रजीत पाण्डेय - Prof. Indrajeet Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८) य्के काव्य-वदिष्ठ्य छन्द योजना भाषा-शेलो की दृष्टि से मधुसूदन दास ने तुलसी के राम-चरित मानस का रचनादर्श स्वीकार किया है। सम्पूर्ण प्रन्थ में सबसे अधिक चौपाइयां इसके पश्चात्‌ दोहा सोरठा हरि गोतिका जोटक ब्रिभगी भुजंग प्रयात और तोमर छन्दों का प्रयोग किया गया है । रामचरित मानस में तुलसीदास ने हरि गीतिका को इस प्रकार प्रस्तुत किया--हरि गीतिका का प्रथम चरण ऐसे शब्द से प्रारम्भ होता है जो उसके पूर्व की अर्द्धालीका अन्तिम शब्द होता है या उसके श्रेणी में आते हैं जब अर्द्धाली के कई शब्द हरि गीतिका के आरम्भ में ग्रहण किये जाते है तब कभी-कभी उनका क्रम हरिगीतिका में आगे-पीछ भी हो जाता है किन्तु रामचरित मानस में इस नियम का निर्वाह सवंदा नहीं देखा जाता ।. रामाश्वमेध में मधुनूदन दासने इसका पूर्ण निर्वाह किया है । रामचरित मानस की शेली पर पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र ने यद्यपि लव-कुश काण्ड मिलाया है कहीं-कहीं पर कुछ छ्दो म॑ तुलसी का नामोल्लेख भी मिलता है किन्तु भाषा और शैली को दृष्टि से यह ग्रन्थ तुलसी दास द्वारा रचित नहीं कहा जा सकता । आचायें रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास में मधुसूदन दास के रामाश्वमेध के सन्दभं में जो समीक्षा प्रस्तुत की वह उल्लेखनीय है- इन्होंने गोविन्द नामक किसी व्यक्ति के अनुरोध से संवत्‌ १८३६ में रामाश्वमेध नामक एक बड़ा ओर मनोहर प्रबन्ध बनाया जो सब प्रकार से गोस्वामी जी के रामचारित मानस का परिशिष्ट होने के योग्य है । इसमें श्रीरामचन्द्र द्वारा अश्वमेध यज्ञका अनुष्ठान घोड़े के साथ गई हुई सेना के साथ सुबाहु दमन विद्युन्माली राक्षस वीरमणि शिव सुरथ भादि का घोर युद्ध अन्त में राम के पुत्र लव और कुश के साथ भयकर संग्राम श्री राम द्वारा युद्ध का निवारण और पुत्रों सहित सीता का अयोध्या में आगमन इन सब प्रसंगों का पद्म पुराण के आधार पर बहुत हो विस्तृत और रोचक वर्णन है । ग्रन्य की रचना बिल्कुल रामर्चारत मानस की शैली पर हुई है । प्रधानता दोहों के साथ चौपाइयो की है पर बीच-बीच में गीतिका आदि और भी छन्द हैं। पद विन्यास और भाषा सौष्ठव रामचरित मानस का ही है। प्रत्यय भर रूप भी बहुत कुछ अवधी के रखें गए है। गोस्वामी जी की प्रणाली के अनुसरण में मधुसूदन दास को पूरी सफलता हुई है । इनकी प्रबन्ध कुशलता कवित्व शक्ति और भाषा की श्लिष्टता तीनों उच्च कोटि की हैं । इनकी चोपाइयाँ अलबत्त गोस्वामी जी की चौपाइयों में वेखटक मिलाई जा सकती




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