महाप्राण निराला पुनर्मुल्यांकन | Mahapran Nirala - Punarmulyankan

Mahapran Nirala - Punarmulyankan by डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी - Dr. Premshankar Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीज़ नहीं हैं। अनेक अंग्रज कवियों ने अपने ही देश के शासन का विरोध किया था गौर भारत की स्वाघीनता का समर्थन किया था । अंग्रेजी साहित्य की प्रगतिशील धारा से भारत के साहित्यकार कुछ ग्रहण करें तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं था । इसके सिवा बंगाल में ऐसे विद्वान थे जो अंग्रजी के अतिरिक्त यूरोप की अन्य भाषाओं से भी परिचित थे । सारी पाश्चात्य संस्कृति सिमटकर इंग्लैंड में न रह गयी थी । उसी निबंध में निराला ने आगे लिखा-- बंगाल के अमर काव्य मेघनाद वघ के रचयिता माइकेल मधुसुदन दत्त के सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि उन्होंने अपने महाकाव्य की रचना कई देशों के महाकवियों के अध्ययन के पश्चात्‌ की थी । फ्रेंच प्रीक लेटिन आदि कई भाषाएँ जानते थे और यूरोप में रहने के समय काव्य शास्त्र में काफी प्रवेश कर लिया था । . (उप०) इग्लैंड की यात्रा रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी की थी। इग्लैण्ड और युरोप की यात्रा उनसे पहले राजा राममोहन राय ने की थी । यूरोप से भारत का सम्बन्ध पुराने समय से था अंग्रजी राज तो बाद में क़ायम हुआ । इग्लेण्ड और यूरोप के अनेक साहित्यकार भारतीय दर्शन से प्रभावित हुए थे। उन्हें भारतीय साहित्यकारों ने समानधर्मा माना हो तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं । शेली और रवीन्द्रनाथ की मानवता और भिन्नता दिखाते हुए निराला ने इस टिप्पणी में लिखा था-- रवीन्द्रनाथ के योरपीय चरित्र-लेखकों ने उनके जीवन का एक काल ऐसा निश्चित किया है जिस समय उन पर अंग्रेज कवि शेली का प्रभाव पड़ा है कुछ हो कविताओं के निकलने पर लोग इन्हें बंगला के शेली कहकर पुकारने लगे । बंकिमचन्द्र ने स्वयं भी इस दाब्द से इनकी संवधंना की थी उस समय आर्‌० सी० दत्त भी थे। बंकिमचन्द्र ने अपनी माला इन्हें पहना दी थी । यह तरुण रवीन्द्रनाथ थे । (निराला रचनावली खण्ड-४५ पृ० ४५०) निराला ने डी ० एल० राय के बारे में लिखा कि वह चित्रांगदा को अदम्य काम वासना देखकर क्षुब्ध हुए और उन्होंने उसको कड़ी आलोचना की । आगे निराला कहते हैं-- पर इससे कवि को क्या ? कवि अपनी रुचि के अनुसार ही चित्र खींचता है। अस्तु । तब से अब तक प्रेम के सहस्रों लावण्यमय उज्ज्वल चित्र रवीन्द्रनाथ ने खींच हैं और सभी पश्चिम के रग में रंगे हुए हैं। ( उपयुक्त पू० ४४८-४९ ) बसे चित्र कालिदास में और स्वयं निराला के साहित्य में मिल जाएँगे । यह सब पश्चिम का रंग नहीं था । निराला शेली की प्रगतिशील विचार धारा से परिचित थे । उसी निबन्ध में उन्होंने आगे लिखा था-- उस समय के समाज पालमिंट और बड़े-बड़े आदमियों के स्वभावों को जिस तरह शली अपने शब्दों की शिखाओं से भुलसा देता है उसी ६ / महाप्राण निराला पुनसू ल्यांकन




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