भारतीय दर्शन में प्रामान्यवाद का समीक्षात्मक विवरण | Bhartiya Darshan Me Pramanyavad Ka Sameekshatmak Vivaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3. बौद्ध न्याय गौतम बुद्ध ने न्याय की समस्याओं पर विचार नहीं किया है। उत्तरवर्ती बौद्ध दार्शनिकों ने न्याय की शैली को अपनाने के अतिरिक्त न्याय के विषयों पर भी चर्चा की है। बौद्ध न्याय के प्रतिनिधि दार्शनिक असंग बसुबन्धु दिड्नाग धर्मकीर्ति शान्तिरक्षित और कमलशील हैं। असंग संभवत प्रथम आचार्य थे जिन्होंने तार्किक आधार पर विज्ञानवाद को स्थापित करने का प्रयत्न किया। 2 उऊसंग ही. प्रथम बौद्ध दार्शनिक थे जिन्होंने विज्ञानवाद की स्थापना के लिए नैयायिकों के पः्चावयवी परार्थनुमान को बौद्ध क्षेत्र में व्यवहारत प्रचलित किया। ये पहले वैभाषिक सम्प्रदाय के अनुयायी थे। आचार्य मैत्रेय के सम्पर्क से विज्ञानवादी हो गये थे। ये प्रसिद्ध दार्शनिक बसुबन्धु के ज्येष्ट भ्राता थे जो द्वितीय बुद्ध के रूप में दार्शनिक जगत में प्रसिद्ध हैं।13. असंग की महत्वपूर्ण देन उनका बौद्ध न्याय अथवा प्रमाणशास्त्र है जो महायानाशिधर्म-संयुक्त-संगितिशास्त्र के सातवें तथा सोलहवें खण्ड में उपलब्ध होता है। प्रारम्भ में सर्वास्तिवादी थे। असंग के प्रभाव में वे विज्ञानवादी हो गये थे। वसुबन्धु का विज्ञानवाद में अतुलनीय देन है। उनकी 32 पुस्तकें उपलब्ध होती हैं। उनमें से बौद्ध न्याय की दृष्टि से तीन प्रसिद्ध हैं। न्याय ग्रन्थों का अपूर्ण अनुवाद चीनी भाषा में उपलब्ध है। इसका नाम वाद-विधि है। इसमें वर्तमान अंशों को देखने से गौतमीय नैयायिकों के साथ इनका छघानिष्ठ साम्य लक्षित होता है। इन तीन ग्रन्थों के अतिरिक्त एक तर्कशास्त्र नामक ग्रन्थ भी वसुबन्धु ने लिखा था जो कि चीनी अनुवाद के रूप में प्राप्त है। बौद्ध न्याय के पिता आचार्य दिड्नाग वसुबन्धु के शिष्य थे। बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदायों का पृथक विकास होने पर भी बौद्ध स्याय का विकास चौथी शताब्दी तक नगण्य ही था। नागार्जुन ने




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