आलोचक रामचंद्र शुक्ल | Alochak Ramchandra Shukla
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.62 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak
No Information available about विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६३. जीवन-वृत्त प० केशवचन्द्र शुक् ् आज से प्रायः १० वर्ष पूर्व को बात है । राठ ( हमीरपुर ) के एक साधारण से मदरसे में एक दुबले-पतले साँवले रज़ के सात साल के बालक को उदू -फारसी की शिक्षा मिल रही थी । उसके पिता राठ के सुपरवाइज़र कानूनगों थे । ब्राह्मण होते हुए भी चाल-ढाल तथा वेश-भूवा तत्कालीन फारसी-शिक्षा-सम्पन्न किसी मौलवी से कम न थी । काली घनी दाढ़ी गोल मोहरी के पायजासे पट्टदार्॒ बालों तथा ्ब्पका की शेरवानी ही तक बात न थी उनकी जबान भी सर सेग्रद की जबान थी तथा उनके विचार उस समय के फारसी पढ़े हुए शि्ट कहलाने वाले सुसलमानों से साधारण व्यवहार की बहुत-सी बातों में अधिकतर सिलते-जुन्नते थे । संस्क्रत झ्थवा हिंदी बेहूदा जबान थी । घोती पहनकर बाहर निकलना या नंगे सिर रहना जुर्म था। उनके उन्नत सुब्यवस्थित शरीर तथा स्वासाविक रतनारे विशाल नेत्रों से उनके उच्च वंश का सहज आमसास होता था एय्ट्रंस पास करके बस्ती जिले से वे राठ नौकरी पर आये थे । श्रवस्था २५-२६ वर्ष की थो । उनके साथ में उनको घ्मे- पत्ी उनकी दृद्धा माता तथा दो छोटे-छोटे उनके सड़के थे । एक की अवस्था सात वर्ष की तथा दूसरा तीन चष का दूध पीता बालक था इस परिवार में श्रद्धा माता का परम ऊर्ज स्थान था । वे राम-भक्त थीं । नित्य बढ़ी सुन्दर रीति से वे तुलसी केशव आदि के भजन गातीं रुथा एजा-पाठ में निम्न रहतीं । उस समय झाय-समाज का चारों ओर प्रबल आंदोलन चल रहा था । स्वामी दयानंदजी के लेखों को राठ सें भी कुछ लोग बड़ी श्रद्धा के साथ पढ़ते और दूसरों को सुनाते थे । इस समाज ने बस्ती जिले के नवयुवक कानूनगों को भी अपने रंग सें रंगा । आगे चलकर अवश्य यह स्ग उड़ने लगा रुथा अन्त में कुछ दिनों के उपरांत मिजापुर में जहाँ वे सदर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...