नसीम | Nasim

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Nasim  by शौंकत थानवी - Shaukat Thanvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्् कि मैं घ्रापको यहाँ से चिकलने नहीं दूंगा । इस कत्तेव्य को मैं चाहता हूँ कि ग्रे हमदर्दी भौर सुखद ढंग से पूरा कर लू । किन्तु जब मजबूर कर दिया जाता हूँ हो दूसरी सूरत भड्तियार कर लेता हूं । मगर इसकी जिम्मेदारी खुद मुझ पर नहीं होती । नसौीम ने कहा-- अच्छा खैर श्रव तो श्रपना नाम वत्ता दीजिये 1 उस व्यवित ने कहा-- श्राप मुझको तिवारी कह सकते हैं । भ्रच्छा श्रब अपाप वास्तव में पारीम करें श्रापके लिए नीद का ध्राना अत्यन्त श्रावश्यक ड् भ्ल सुबह मुलाकात होगी । तिवारी के जाने के वाद उस वातावरण के धारे में देर तक सोच-पिचार करता रहा भ्रौर उसी दशा में खुदा जाने कब श्रांस लग गई ? नींद तो फाँसी के तस्ते पर भी प्रा जाती है न ।




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