बाजीगर | Bazigar

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Bazigar by आशुतोष मुख़र्जी -Ashutosh Mukherjee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाजीगर / ७ लगा । कई मिनट बाद युभेन्दु का एक हाथ खींचकर श्रपनी वस्द मुट्ठी पर रख लिया । गुणीदत्त आगे क्या करेगा शुमेन्दु इसका श्रन्दाज नही लगा पाया । अपने सवाल का कोई जवाब न पाकर उसे हैयनी हो रही थी । श्रलवत्ता युणीदत्त की भांखें जरूर कुछ कह रही थीं श्रौर जिसके बारे में वे कह रही थी वह मानो उसकी मुट्ठी में बन्द ही । थुणीदन के चेहरे पर मिगाहे जमाए हुए उसने जब मुट्ठी खोली तो भ्रवाक्‌ रह गया । उसके हाथ में कागज की चिन्दियों की जगह कोरे कागज का एफ बडा-सा टुकंडा था जिस पर स्याही से साफ-साफ श्रक्षरों में लिखा था ठगवाजो शुभिन्दु भ्रचकचा गया । थोड़ी देर पहले उसकी भ्राँखों के सामने ही कागज फाडकर चिन्दियाँ बनायी गयी थी श्रौर उसकी गोली बनाकर उसके हाथ पर रख दी गयी थी । इस वीच वह जुड़ कैसे गयी ? श्रौर उसने तो अभी-अमी सवाल किया था उसने इतनी जल्दी जवाब कब भोर कैसे लिख लिया ? गुणीदत्त से नजरें द्विलते ही वह हँस पडा । उसने कागज पर लिखे हुए जवाब को हंसकर उडा देना चाहा । उसे लगा उसकी पलक पक गयी होगी श्रोर इसी दीच उसने हाथ-सफाई दिखा दी । उसने पृष्ठ ही लिया तो मैं कया यह सममूं कि मेरा सवाल तुम्हें मालूम था श्रीर इसका जवाब तुम पहले से ही लिख लाए थे ? जी नहीं ग्रापकी हो कलम से तो लिखा है . श्रापकों पता नहीं चला ? धुमेन्दु एक बार फिर चकरा गया । उसने श्रपनी जब टटोली 1 सच हो उसकी कलम गायत्र थी । श्रमी थोड़ी देर पहले ही वाहर डक चेयर पर बैठकर उसने धरवालों को सत लिखा था। उस समय तो उसकी कलम जेव में ही थी । उसके सामने ही गुणीदत्त हाथ पुमाते हुए हवा में कुछ खोजता रहा श्रौर जाने कहाँ से कलम निकालकर धीरे से उसके सामने रख दिया 1 थुभेस्दर मुह बाएं देलता रहा / इु ने अपने हाथी से शुभेन्दु की जेब में वह पेन खोस दिया सर मार मुस्कराने लगा ।




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