नाना | Nana

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Nana by एमिल ज़ोला - Émile Zola

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे दूसरे दिन दस वे तक माना सेती रही । बोलिपार्द हॉसमेन में एक मकान की दूसरी मजिल में नाना रहती थी । पिछुलि साल मारको का एक धनी व्यापारी पेरिस में जाड़ा बिताने श्वाया था उसी ने इस मकान का छुः महीने का किराया पेशगी देकर नान को ब्दों ठदरा दिया था | कमरे काफी वड़े थे इसलिए उनको उचित प्रकार से सजाना मी मुश्कित था मड़कीली सजावट थी--कवाड़ी के यहाँ से खरीदी हुई मेज कुर्सियाँ थीं--नकली फ़ानस ये । नाना पेठ के बल श्रौंधी सो रही थी श्रौर उसकी वाह तकिये को श्रालिंगन में बाँधे हुए थीं । उसका चेदरा जिस पर रात की थकान के चिन्द थे--तकिये में छिपा हुश्रा था । कमरे का वातावरण वोमिल शरीर गर्म था । नाना की नंद श्रचानक खुल गयी । पलग पर उसके पास कोई नहीं है यद देख कर उसे श्याश्चर्थ हुआ । वरावर के तकिये पर शमी तक एक इल्का-सा गदद्ा था जिस पर थोड़ी देर पदले तक किसी का छिर रहा होगा 1 नाना ने घंटी बजाई । कया वह चला गय ? नाना ने नीकरानी ले पूछा । जी दान--मदाम मस्यों पॉल दस मिनट हुए चले गए । शाप थकी हुई थीं इसलिए श्ञापकों उन्होंने जगाया नहीं । वह कह गये हैं कि कल फिर श्वायेंगे । नौकरानी जो खिडकियाँ खील रही थी । चमकदार घूप सारे कमरे में मर गयी थी नई




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