आधुनिक भारत के निर्माता फिरोजशाह मेहता | Aadhunik Bharat Ke Nirmata Firozshah Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इग्लड में 9 समय के राजनतिव विवाद में एक सई भावना जागृत की ।. अटलाटिक हासागर के पार नम्रीवा में मानव जाति ने एक शानदार लड़ाई लदी मौर दासता दे. भभिशाप को समाप्त घर दिया । उस समय माउव जाति के विदारी मे भ्तिला रही थी । लोड मार्ल के शब्दों मे-- उठ लोगो वे जलावा जो यह मानकर चलते है दि सब युग प्राय एक से ही रहें है तथा सभो सनी और पुरुष उन्नीस-वीस होने हैं. कोई व्यक्ति इस बात से इंकार नहीं वर सकेगा कि इस पीड़ी ने निर्भीता से आगे दी और कदम यढाया 1 यह था उस समय का चातावरण । इस वातावरण मे फिरीजशाह मे दुछ पेसे मिद्धात अपनाएं वा मांगे चलकर उनके राजननिक जीवन का आधार बने । पाश्चात्य सभ्यता व दिचारघारा के स्वस्थ तत्वों के संम्पव में आवर उनका इृष्टिकाण व्यापक बना उनवे सन में साहस विचार-रवानश्य तथा सुन्यवस्थित उन्नति के प्रति प्रेम जागुत हुआ । साथ ही साथ विधित रूडिवाद भी उ होने प्रहण किया जो अप्रेजा के चरिस वे मुर में पिद्यमान है । उनम सीघ हो उन युणा का विकास हुमा जिनवे फलस्वरूप बह दूसरे नारतीया से यहूत ऊचे उठ गए । उनके विचारा मे कुछ ऐसी परिपक्दता थी कि जो भी यक्ति उनके सम्पर में आता उनसे प्रभावित हुए विना न रहता । सामयिक समस्याआ मे उनकी विशेष सचि थी विशेषवर उन प्रइनों में जिनका भारत पर प्रभाव पढ़ता हो । बड़े ईस्ट इंडिया एसोसियशन के बहुत सक्रिय सदस्पा में से थे । ईस्ट इंडिया एसासियन की स्थापना दादाभाई नोराजी ने अक्तूबर 1866 से की थी । इस सम्या का लक्ष्य था. स्यतय और मिस्वाय ढंग से और वध उपायों से भारत दे हितो आर भलाई का समयन तथा संवधन करना 1 यह सस्या दादाभाई नौरोजी मे कुछ प्रबुद्ध भारतीय राजाया की सहायता से स्थापित वी थी । यहू उस समय की वात हैं जद वह व्यापारिक मदी के पश्चात कुछ दिना के लिए भारत जाए थे । मंदी से उस फम को भी घादा हुआ जिसमें दादाभाई नौरोजी साझेदार थे 1 बाद में यह सरथा रिटायर टुए एम्ठो- डियन अपसरों के हाथ पड गई। शुरू से इस समस्या ने भारतीय में राजननिक न




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