न्याय दीपिका | Nyay Depika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकचन डे कापो हाथ बढाया हे 1 रिंगम्बर श्यौर श्वेताम्बर दोरना सम्प्रतायमिं परस्पर जा मतमेद पाया नाता दै बह दार्शनिक नहीं श्रागमिक हे । इसलिये इन नोनोंके दर्शन साहित्यवी समृद्धिरे घायवाहिक प्रयासमें काइ श्रन्तर सदी आया ईै | दशनशाख्रतरी मुख्य उ श्य बस्तुनस्वरूप व्यवस्थापन द। माना गया है। जैनटरॉनम चस्वुका स्वरूप प्रनेकान्तात्सक (श्रनेकधरमार्मक) निर्णीत किया गया दै। इसलिये नैनदर्शनका मुख्य सिद्धान्त श्रनेकान्तयात ( श्रनेकान्तकी मान्यता ) है 1 श्रनेकान्तका श्रर्य है--परम्पर विराधी दा तस्वोंका एक समन्त्रय । ठात्पयें यह दे कि नहीँ टूसरे दर्शनोंगे वस्तुकों सिर सत्‌ या श्रसत्‌ दिए सामान्य या. विशेष सिंप नित्य या श्रनित्य सिंफे एक या श्रनेक श्रीर सिप मिन्न या श्मिन स्वीकार किया गया है वहाँ जैन दर्शनमें वस्ठुकों सत्‌ श्रौर श्रसत्‌ सामान्य शरीर विशेष सिस्य श्र श्रनित्य एफ श्रीर श्रनेर तथा भिन्न श्रीर श्रमित्र स्वीकार क्या गया है श्रौीर जैमतशनकों यद सत्‌-श्रसत्‌ सामान्य विशेष मित्य श्रनित्य एक-श्नेक श्रीर मिन्न-झमिसरूप वस्तुद्पियक मान्यता परस्पर विरोधी दो न्वावी एक्य समन्वयकों सुचित करती है | वस्तुरी इस श्रेक धर्मात्मकतारि निर्ययम साधक प्रमाण शोता है । इसलिये दूसरे दर्शनोंवी तरद नेनदशनमे भी घ्रमाण मा यताका स्थान दिया गया है | लेकिन दूसरे रशेनाम जहाँ कारक्साक्ल्यारिकों प्रमाण माना गया हैं वहा बैनररशनमें सम्पस्ान ( श्रपने श्रौर श्पूव अथपे नि्णौयक शान फ का दा प्रमाण माना गया दै फर्याकि शप्ति ज्ियाव प्रति जो करगा दा उस का बैनदर्शनमें प्रमाण नामने उल्लेख फ्या गया टै। शप्तिक्रियाब प्रति करण उत्त प्रकारका शान थी दा सकता दें कारकस क्- ल्यादि नहीं कारण कि नियारे प्रति श्रत्यन्त श्रर्यात शप्यवदितिरूपसे साधक कारणकों ही व्याकरणशास्त्रमं फरणसज्ञा ली गयी है श्र १ साधकतम करणम । --जेंनेन्दव्याइरण सा११३ ।




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