राजस्थान के कवि | Rajasthan Ke Kavi

Rajasthan Ke Kavi by रावत सारस्वत - Ravat Sarasvat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योत सीपी पाठ पेट मे मोती गूगी मरण बुलावे क्यू रवै जीवती परख जगत री तो श्रो मरणु जीणु है विधा काछजों कठा बचसी जद मोती लासीणु है कुख उजाठूली मै थारी समदर नू अकुलावे वयु चन्नण सौरम वसा प्राण में सुखा हाड घसावे क्यू रगड घापज्या गुण न नीवडे तो आओ पिसणु हसणु है कचन काया धसा सने तो प्रभू लिलाड पर वसण है जस फैलास्यू जामण थारो घरती व्‌. पिसतावे क्यू दिवला ले र पराई चिन्ता हिवटो रोज दभावे क्यू नहीं निदतरी भौम भ्रधेरो जाणँ तो. के वढणु है नेह पियो तो जोत नैण री वण कर मने उपडणु है कारज सारू जलम सुधार बाती तू घवरावे क्यू सीपी पाछ पेट में मोती सूगी मरण युलावे क्यू टी




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