अजूबा राजस्थान | Ajuba Rajasthan

Ajuba Rajasthan by डॉ. महेन्द्र भानावत - Dr. Mahendra Bhanavat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माताजी का मदिर बढ़ा भव्य वलास्मव बना हुग्म है. पूरा कांच का बना हुमा है. यहीं के सुप र-मिह्द्री का किया हुथा कास है यह ढोल दादिया दाला अपना बधा बघाया घनाज पाता है. भीपे को बुछ नहीं मिलतां- बोडी तमाखू तक नहीं .. कभी कोई रसोई बनती है ठव भी भोपा उसे काम में नही लेता है. साकल वगैरह का यहा काम नहीं है. मामूली घूजशी चलती हैं परे शरीर में भोपे को जब तक भाव रहता है देवी रहती है तब तक पूरा शरीर कपित होता रहता है. यों हर दौतवार को यहां घाम चलती है. जातरी श्रद्धालु झाते ही रहते हैं इसी के म्रद्दाते में एक जगह सावरियाजी की है हनुमानजी की भी मूर्ति है. घमेराज वा भी स्थान है. इनका भाव भी रवि को हो होता है. नवरात्रा में भी सभी दिन नहीं केवल रवि को हो भाव होता है भीण्डर के पास जगल में वरेक्शामाता का प्रम्तिद्ध स्थान है. इस माता की बड़ी मानता हैं. निसतानों को सतान देने वाली देवी भी यह है इसीलिये यहा बालकों के कड्टल्ये उत्तारे जाते हैं. माता की सुि झाप रूप ही है यानी कोई गडगडाया पत्थर नहीं होकर अउगड़ पत्थर है केदल धड रूप में ही है. मदिर बढ़ा भव्य बना हुमा हे बहुत पुराना जैसे जैन मदिर हो पर उसमें मूधि ऐसी देखकर यह कल्पना स्वाभाविक लगती है कि मूलत यह जैन मदिर रहा होगा पर इसमे मूति किसी कारणवश यह सगादी होगी. माताजी को सेवा प्रतिदिन होती है पर कोई भोपषा नहीं है जिसे भाव श्राति हो. पाती की मानता है. फूल देती है. मीठी धाम है बरसात नही होने पर इस देवी की मनौती को जाती है. मन में धारा काम लेकर यदि देवी के वहा पहुँचा जाय तो यह देवी इच्छापूरण करने वाली है. इसका पुजारी है. पशुम्मों में यदि बोई बीमारी लग जाती है तो यहा भ्ररजाऊ होती है वहा भागे जातरियों से पुछ्ताछ करने पर पता चला कि किसी समय वहीं गुजरों को भंसे चर रही थी. उनमे एक पाढा या एक बुदिया धर से मा रहो थी जिसने बहुत थक जाने के कारणय पाडे पर बैठकर मदिर दर्शन जाने को कहा. उस युदिया दो. फिठाकर पादप सदिर रक भाया पर चह्ा भाठे हो उसना लोह हो गया भोर बुढ़िया न जाने कहा लुप्त हो गई. बहा खुन हो खून हो गया कहेते हैं वह बुद्धिया नद्दी थो देवी शक्ति थी जो मदिर में मूि में प्रविष्ठ हो गई. 3




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