राजस्थानी लोक - साहित्य का सैद्धांतिक विवेचन | Rajasthani Lok Sahitya Ki Saiddhanti Vivechna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दाइचारप प्रणाली दी. सम्पता ने क्लएु एस सपुवत झाब्दो (जेस लोव-दार्ता सता016 सो संगीत फठताएनाएी में इसबा अर सवुचित दोवर केवल उन्हीं बा शान कराता हैं. जा नागरिव-सस्टुर्ति और सर्विधि (क्षा दी धाराओं से मुख्यत परे है जो पनरकषर-मद्रावायं हु अचवां (जिस्दू मामूली-सा अध्षर-शन है--ग्रामीण और गंवार तब अन्य जिंद्वान डॉ० बार ने कोर पाब्द वी ब्यास्या करते हुए. लिखा है. पक फोक से सम्पता से सुदूर रहने वाली (बसी पूरी जाति की दोघ होती हैं परन्तु इसवा घदि विस्तृत बर्थ लिया जाये ता पसी सुसरस्झत राष्ट्र के समग्र लोग 1 गि। ग्लोक पाब्द को लेबर पोर्वाप्य तथा पााइचात्प मनीपियों ने प्राय+ साम्य रखने द्वाले विचारों को ही अभिव्यनर्त रिया है. । आधुनिक दर्रिस्पितियों पर ह्टिपार्त करने पर पता ब्यलता है. प्लोब पाव्द ने न दल वह वर्ग विशिष जो अंतर भाव सु अन्य श्रद्धालु थी भाँति पूर्ण आइवस्त हकर प्रदर्ति के कणन-दण में देदिव-सत्ता वें दर्न कर्ता हैं चुड़-प्रदुद एवं की संशा से अभिहित फिंयां जाता है. । स्वाभार्दिव ता सहजोद्रेव ता एवं सरलता इसने प्र गन गुण हैं 1 इसके प्रद्पेव शब्द ने हुदयस्पशिणी अद्वितीय दाक्त है. । शदद्वानों के बेवारिक जाटित्य रा अनवगत भाव-गर्त बा निवास उक्त विवेधित लोक की पघाध्वत अभिव्यवित-पस्म्पण ही सोव-साहित्य है.1 डूस लोक के मान की अभिव्पजना नाना प्रवारेण हुई है. सोक प्रतिदिन जिस




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