महाराणा राजसिंह | Maharana Rajsingh

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Maharana Rajsingh by रामप्रसाद व्यास - Ramprasad Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भौगोलिक पृष्ठभूमि एव ऐतिहासिक परम्परा श्र सर्वाधिक प्राचीन भील है जिमका निर्माण पद्धहवी सदी मे महाराणा लाखां के शासनकाल में किसी वनजारे ने करवाया था । यह कील लगभग सवा दो मील लम्वी एवं डेढ़ मील चौड़ी है । उदस्सागर मील उदयपुर से लगभग मील पूर्वे में स्थित है । यह भील भी लगभग ढाई मील लम्बी तथा दो मील चौड़ी है । तीसरी महत्वपूर्ण भील राजसमद है जो उदयपुर के उत्तर में लगभग चालीस मील की दूरी पर स्थित है। चार मील लम्बी द पौने दो मील चौड़ी इस भील का निर्माण महाराणा राजिह ने करवाया था । इस भोल का विस्तृत विवरण प्रस्तुत रचना के अध्याय आठ में दिया जायमा । चौयी महत्त्वपूर्ण झील जयसमन्द है जो उदयपुर के दक्षिण मे ३९ मील की दूरी पर स्थित्त है । लगभग नौ मीन लम्बी एवम्‌ छ मील चौड़ी यह भील कंप्टिन येट के शब्दों में सानव निर्मित भीलो में सर्वाधिक विशाल भील है । इस भील का निर्माण संवनू १७४४ व. ७४८ के मध्य महाराणा जयसिंह ने करवाया था । इन प्रमुख भीलो के भ्रतिरिक्त अनेक विशाल जलाशय हैं जिनसे श्रासपा्त की भूमि की सिंचाई की जाती है । मेवाड़ का ब्रथिकाश भाग प्वताच्छादित होने के कारण यद्यपि यहाँ कृषि योग्य भ्रूमि कम है लेकिन जल के वाहुल्य के कारण एवम्‌ श्रत्य रासाय निक तरवों की विद्यमानता के कारण भूमि में उर्वरा शक्ति पर्याप्त मात्रा में है। इससे दो फसलें अत्यन्त श्रासानी से हो जाती हैं । समूचा देश हरा-भरा णुबमु भ्नत्पन्त मनमोहूक है । उक्त विवरण से स्पष्ट है कि मेवाड प्रदेश पर राजस्थान के श्रन्य प्रदेशों की भपेक्षा प्रइति की दिशेष कृपा रही है। समूच प्रदेश धन-धान्य से युक्त एव श्राथिक हृप्टि से समृद्ध व सम्पत्र रहा है। इस भीगीलिक पर्या- चरण ने स्थानीय मानव समाज को श्रत्यस्त प्रभावित किया है । स्थानीय पर्वतीय प्रदेश वी वीहडता ने मेवाड के निवासियों को श्रत्यन्त साहुसी परिश्रम एवम्‌ निर्भीक वना दिया । पयरीली भूमि ने ही इस प्रदेश के निवासियों में कप्ट सहन बरने वी क्षमता उत्पन्न की । यहाँ के लोगो ने मातृश्रुमि को स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु अपार कष्ट सहन करते हुए निरस्तर सघर्पेमय जीवन व्यतीत किया । पर्व पीय प्रदेशों ने स्थानीय निवासियों में शौयें एवसु साहस का सचार करने के साथ साथ इस प्रदेश को श्राक्मणो से बच्चाने मे भी अद्वितीय भूमिका अदा की है । पहडी स्खलापो ने एक तरफ शत्रु के मार्ग को भवरुद्ध किया. तो दूसरी भोर स्थानीय स्वतन्त्रता के सेनानियों को सुरक्षित घाथव प्रदान किया 1 शत्रुझी को पहाड़ी झेत्र में प्रदेश होने पर श्रस्पथिक हानि उठानी पढ़ी ।




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