श्री राधा सुधा निधि में निकुंजलीला युक्त भावनाओं का चिन्तन | Shri Radha Sudha Nidhi Me Nikunjlila Yukt Bhavanaon Ka Chintan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Shri Radha Sudha Nidhi Me Nikunjlila Yukt Bhavanaon Ka Chintan   by राजवैध लक्ष्मी नारायण - Rajvaidh Lakshmi Narayan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजवैध लक्ष्मी नारायण - Rajvaidh Lakshmi Narayan

Add Infomation AboutRajvaidh Lakshmi Narayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ तीन . यह भगद्वाक्य गीता में है सत्य सत्य ये सब ही भगवान्‌ के हैं इनमें मानुषी बुद्धि रखना है। अवजानन्ति मां सुढा मानुषीं तनुमाश्रितमू” श्रीभगवानु स्वयं ऐसे लोगों को सूखे बत- लाते हैं । ऐसे ही गुरु को भगवान्‌ समझने वाले जिनका नाम लेने मात्र से जीवन साथंक हो जाता है जिनकी दरण प्राप्त कर जीव भगवद्धास ( नित्य लीला ) में पहुँच जाता है जैसे-- थी सेवक जी महाराज, थी श्रीभट्ट जी महाराज, श्री विट्रल- विपु देव जी महाराज, श्री परदराम देंव जी महाराज श्री व्यासजी महाराज श्री हरिराम व्यास जी महाराज श्रीविहारिणदेव जी महा० श्री हरिप्रिया जी श्री सूरदास जी श्री हरिराय जी ( चाचा ) श्री वृन्दावन दास जो ( चाचा जी ) श्री रूप सनातन गोस्वामी जी श्री प्रवोधानन्द सरस्वती पाद गोस्वामी जी श्रीदास गोस्वामी पाद (श्री रघुनाथ दास जी गोस्वामी ) श्री माता मीरा बाई आदि श्रनेक गुरु के अ्रनन्य भक्त हैं जिन की गुरु निष्ठा से जगत को परम श्रद्धा भक्ति प्राप्त हो रही है यह सब परम पावन जगत्‌ के प्राणियों के उद्धा- रक हैं जिन-जिन जीवों ने इनकी शरणली है वे सब अनायास भव- सागर को पार कर निज धघामको गये हैं और जा रहे हैं तथा जायेंगे सब ही आचाये संत, गुरु रसिक भक्त, जीव को भगवान्‌ की प्राप्ति कराने वाले हैं, साधन क्रिया, भजन रीति, सेवा पथक २ प्रकार से जीवकों योग्य बनाकर जीव को ब्रह्मा सम्बन्ध करा देते हैं । इनके निर्दिष्ट साधन विविध प्रकार का होने से कम बुद्धि वाले ( विषयो- सकत अजितेन्द्रिय वाले अज्ञानी ) जन रागद्ेष वाली अपनी स्वल्प और हीन बुद्धि के कारण अपनी बुद्धि के अनुसार इस महान तत्वकों सकुचित बनाकर तदनुसार आचरण करने लगते हैं अर्थात्‌ अमुक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now