यादो की बरात | Yado Ki Baraat

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Yado Ki Baraat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिदगी का मेला श्शू एक रोज याद नहीं किसी खता पर मैं अपने घर के गुलाम हुसनबख्य को ज़नाने मकान के सेहन में खड़ा मार रहा था छडिया से तडातड- तड़ानड कि ड्यांढी से दादा मिया तशरीफ ले आए । दम निकल गया छन्हें दंखकर दि अब वह मुझे मारें या डाटेंगे । लेविन यह देखरर खुशी भरी हैरत हुई कि दादा मिया मुसकराते हुए आए। मेरा हाथ पकड़कर मुये मेरे बाप के बमरे में ले गए ओर मेरे बाप से कहा वशीर मैं तुमको मुवारक- चा देना हू कि तुम्हारा यह मेझला बेटा बडा सूरमा निवलेगा गौर वादशाहां तर से टक्कर हैगा । जब मरे बाप ने पूछा वावा यह अन्दाज़ा क्से हुआ ? वी उन्होंने फरमाया यह गुलाम को मार रहा था गौर ऐसे तवरा सें मार रृद्दा था कि सुरमा वे सिवा एसे तेवर किसी को मयस्सर नहीं हो सवत । बशीर हम पठान हैं । सूरमा भर बुज्दिलो के तंवरा का हमसे पयादा और कौन समझ सकता है और इसलिए कि--सो बरस से है पेशाए-आवा सिपहूगिरी । और फिर मुझसे इरशाद फरमाया कि बलूते-दावां मैं दो गाव वरूटे- रास्त तेरे नाम लिख दूगा। ले ये दो गिन्निया इसकी मिठाई खाना और इसमें से पाच रुपये उस गुलाम को दे देना जिसका तू अभी मार रहा था | आपने भेरा गुस्सा देख ल्या अब मेरी फरागदिली का रुख भी देख लीजिए । मरे बचपन तब मेरे घर से चाय दा रिवाज नही था । नाश्ते मे हम पिहायत खस्ता रोग्रनी रोटिया बालाई और अडे खाते और शहद मिला खालिस दूध पिया गरते थे । जाड़ा के जमाने मे नाश्ते वे बाद जब हमारी जेदा मे छिछे चछणोज़े अख़रोद की गिरी किशमिश बादाम का भग्ज जोर साफ विए हुए पिस्त भर दिए जाते थे तो में बाहर आकर आवाज़ दिया बरता था--बफ के छुडव्वियों चलो पहले इस नारे को समझ लीजिए । मेर्‌ दादा के बफ्खाने की छत पर मिटटी के कोरे बरतन मसाझा लगाकर रख दिए जाते थे जिनमे पिछले पहुर तक वफ जम जाती थी गौर मुह अधेरे वफसनि के आदमी पुकारत थे मज़द्रा को--ऐ बफ के छुडब्वियो चलो। ऐ वफ के छुडानेवालो साओ । आर वे मजदूर माकर बरतना से वफ खुरच-खुरचकर छूड़ाते और खत्ता म कूट-कूटकर भर दिया वरते थे । ओर इन खत्ता मे जस्त वी सुराहिया दवा दी जाती थी । यह समय लेने वे वाद अब यह सुनिए कि ज्याही मैं वफ के छूडव्वियों चलो वा नारा लगाता था तो लौंडिया दर मामाओआ के तमाम बच्चे दौड-दौडकर मरे पास भा जाया बरते थे । और मैं ऐ मेरे टाघनों चने चवाओ यह कह-कहकर अपना सारा मेंवा उ हद खिला दिया वरता या । जब वभी समदा तालाव के जागी मु हू अधेरे यह गीत गाते हुए मेरे दरवाजे पर आते ये--




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