संस्कृत के ऐतिहासिक नाटक | Sanskrit Ke Aitihasik Natak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राककथन संस्कृत नाटक के क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियाँ विश्वनाद्य- साहित्य में बहुत उच्च स्थान रखती हैं । श्रनेक संस्कृत नाटकों में इतिवृत्त को उपजीष्य बनाया गया है । इस प्रकार के ऐतिहासिक नाटक दो प्रकार से श्रपता विशिष्ट भहत्त्व रखते हैं । प्रथम कला के रूप में सुधी साहित्यानुरागियों का झनुरंजन के कारण झ्िंतीय इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करने के कारण । इन नाटकों के रूप में सामान्य रूप से तो बहुत कुछ लिखा गया है किन्तु जहाँ तक मुे ज्ञात है इनमें ऐतिहासिक तत्त्वों के विनियोग की सफलता तथा श्रसफलता के मुल्यांकन का अभी तक कोई प्रयत्न नहीं किया गया । निश्चित रूप से इतिहासकार इन ताटकों से प्राप्त स्सूनाधिक महत्त्व की सामग्री का प्रायः उपयोग करते रहे हैं किन्तु इनका ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक महत्त्व श्रादि की दृष्टि से सर्वाज्जीण सुल्याकन प्रभी तक भ्रपेक्षित था.। डॉ० श्याम शर्मा ने इस कार्य को सफलतापूर्वेक सम्पादित करके वस्तुत संस्कृत साहित्य की महाद् सेवा की है । डा० शर्मा ने इस प्रबन्ध को तीन भागों में विभक्त किया है । प्रथम भाग में ऐतिहासिक नाटकों के श्रनुशीलन के सिद्धान्तों का निर्धारण किया गया है । उदाहर- राधे संस्कृत नाटकों के विभिन्न प्रकारों का वर्गीकरण इतिहास तथा ऐतिहासिक नाटकों का सम्बन्ध ऐतिहासिक नाटक लिखने के उद्देश्य एवं संस्कृत के ऐतिहासिक नाटकों का वर्गीकरण । द्वितीय शाग में श्रत्यधिक महत्त्व के संस्कृत के प्राचीन ऐतिहासिक नाटकों का सर्वाज़ीण सुल्यांकन किया गया है । जैसे भास के स्वप्लवास- वदत्ता एवं प्रतिज्ञायौगन्धरायण कालिदास का भालबिकार्निमित्र शुद्रेक का मुच्छकरटिक हु की रत्नावली तथा प्रिंपदर्शिका श्रौर विशाखदत्त का मुद्रा राक्षस तथा देवीचर्द्रयुप्तम्‌ । वस्तुतः प्रबन्ध का यह भाग सर्वाधिक मृल्यवादु हैं। क्योंकि डा० प्ार्मा ने इस भाग में अत्यधिक प्रबल प्रमाणों के श्राधार पर श्रलेक सये निष्कर्ष निकाले हैं । उदाहरणाथ डा० शर्मा ने प्रमार्ित किया है कि भास के दोनों ऐतिहासिक ताटक बुहत्कथा पर श्राघारित नहीं है भ्रपितु उससे स्पष्टत प्राचीन हैं श्रौर प्रसंग चश इससे भास के समय पर भी प्रकाश पड़ता है जिसका लेखक मे विस्तार से विवेचन किया है ।




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