जड़वाद और अनीश्वरवाद | Jadvaad Aur Anishvrvad

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Jadvaad Aur Anishvrvad  by तर्कतीर्थ लक्ष्मण शास्त्री - tarktirth lakshman shastriसत्यदेव विद्यालंकार - Satyadev Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न जडचाद निसरगकी शक्तियॉपर विजय पानेंमे यशास्वी हुए मानवी प्रयत्नॉका रहस्प है । जडवाद विज्ञानोंका निष्कर्ष है और बह विज्ञानका साधन भी है | विज्ञानकी जो साधारण सीमाएँ हैं और वरिज्ञानके लिये आधार बने हुए जो सामान्य तन है उनको विज्ञानके समीक्षणसे सिद्ध करके विज्ञानके छिये प्रेरित करनेवाला तथा उसकी प्रगतिके लिये मदद करनेवाला एक मात्र तत्रज्ञान जडवाद ही है । यह तज्ञान तिज्ञानका पूरक शाल है । चह विज्ञानकी अपेक्षा ऊँचा नहीं है । तत्वज्ञान और विज्ञान विज्ञानकी दाखा-प्रशाखाये जितनी मात्रामे बढती फठती-झलती जाती हैं उतनी मात्रामे तत्नज्ञानका प्रयोजन समाप्त होता जाता है। चिज्ञानकी शाखा प्रशाखाओंकी जितनी ही बढती होती है उनने अशभमे परपरासे चले आनेवाले त्रज्ञानोंकी आवश्यकता दिनोंदिन कम होती जाती है। जब प्रत्येक विज्ञान अपने अपने क्षेत्र आनेवाले बिषयॉका विस्तारके साथ पर्यालोचन करके उनका रहस्य बताता है और सारे तरिज्ञान अपने अपने क्षेत्रकी वर्णनीय चीजोंका सकल्ति और सुसगत ब्यौरा बताने लग जाते है तब केवल कल्पनाके ही सहारे घट- पटठकी खटपट करनेवाठे दर्शन या तत्त्वज्ञान एक एक करके बेकार होने लगते है। उसके बाद बिचारोंके सामान्य सिद्धान्त बतलानेवाले विज्ञानको जन्म देकरके वे स्त्रय समाप्त होने लग जाते हैं । जो तत्त्वज्ञान अपनेको विज्ञानसे मी अधिक बढ़कर समझता है उसमें या तो गहन किन्तु कोरी कल्पनाओंका जजाल रहता है अथवा ठोगोंको भ्रममे फँसानेबाढी बातोंका छुपा हुआ समर्थन और ससारकी ऑखॉमें धूल झॉकनेवाला कोरा पांडित्य रहता है । (1) औ.पधएपफपंघ्ष्ट उप्र 00पलपंफा फू 32 कण भा




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