साँची | Sanchi
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.52 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भास्करनाथ मिश्र - Bhaskar Nath Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साँची पर
उपयुक्त समझा होगा । दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि विदिशा के आसपास के क्षेत्र में
स्थवि'रवादियों की स्थिति कमजोर हो गयी हो और महा +-सांघिकों का जोर बढ़ गया हो;
क्योंकि साँची' के अपने स्तम्भ-लेख में अशोक ने संघभेद करने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों को कड़ी
चेतावनी दी थी । अस्तु, बुद्ध के स्थविरवाद की सुरक्षा के लिए उसने सभी सम्भव उपाय किये
होंगे, जैसे बुद्ध के अस्थि-अवशेषों को लाकर विशाल स्तूप एवं विहारों की प्रतिष्ठा पाँच
सुनिश्चित स्थानों साँची, सोना री, सतध!रा, आंधरे तथा भोजपुर-पिपरिया में करना अर संघभेद
की चेतावनी देने वाले शिला स्तम्भ की प्रतिष्ठा इन स्तूप समूहों के केन्द्र स्थल साँची में करना
क्योंकि साँची विदिशा-वासियों के अतिनिकट थी ।
वैशाली से कौशाम्बी' और विदिशा होकर उज्जयिनी जाने वाले महामागं (प्रतोलिका)
पर साँची की पहाड़ी स्थित थी (चिन्न ७५) । उन दिनों अश्मक देश की नदी गोदावरी से लेकर
मगध की वैशाली नगरी तक यह महामार्ग जाता था । प्रतिष्ठान, माहिष्मती, उज्जयिनी, गोनदें,
विदिशा, तुम्बवन आदि नगर इसी मार्ग पर स्थित थे । साँची के अभिलेखों में इन सभी नगरों
का उल्लेख है । प्रतिष्ठान >> पैठान औरंगाबाद जिले में है । माहिष्मती नमेंदा पर बसी हुई
महेश्वर या मांधाता नगरी है ।* गोनद या गोनदें उज्जयिनी और विदिशा के बीच स्थित था ।
बौद्धग्रन्थ महामायुरी में गोनादें-विदिशा का उल्लेख है ? * सारंगपुर (जिला राजगढ़) से प्राप्त
तेरहवीं चौदहवीं शती के शिलापट्ट-अभिलेख में गोनदं के ब्रह्मदेव, सहदेव, गोविन्द आदि
के दान का उल्लेख है । *ै विदिशा नगरी कम से कम चौथी शंती ई० पु० की अवश्य रही होगी |
अशोक के समय में यह एक समृद्ध नगरी थी । यहाँ से प्राप्त तांबें के एक सिक्के पर तीसरी
शती ई० पु० की लिपि में वेदिस या वेहूस लिखा है । * तुम्बवन गुना जिले में अशोक नगर के
पास बीना-कोटा रेल मागं पर तुकनेरी स्टेशन से दक्षिण स्थित तुर्मन है ।*
मौर्यों के बाद पुष्यमित्न शुंग ने मालव पर आधिपत्य जमाया । उसने और उसके लड़के
अग्निमित्न ने अपने साम्राज्य की पश्चिमी राजधानी विदिशा में स्थापित की । मालविकास्नि-
मिन्न में सेनापति पुष्यमित्र, विदिशा के राजा अस्निमिन्न और उसके पुत्त वसुमित्र का वर्णन है ।*
अरग्निभित्र के बाद वसुज्येष्ठ, वसुमित्न (सुमित्न), काशीपुत्न भागभद्र (भद्रक) , देवभूति या
देवभूमि विदिशा के राजा हुए। भागभद्र के समय में तक्षशिला के राजा अंतलिंकित ने अपने राजदूत
हेलियोदोर को विदिशा भेजा था । विदिशा के शुगराजा रे वी मित्र की पहनी चापादेवी ने
भरहुत स्तूप के लिए प्रथम स्तम्भ का दान किया था ।” विदिशा का एक स्तम्भ-लेख महाराज
१... पाण्डेय, हिस्टारिकल ऐण्ड लिटरेरी इन्स्क्रिशन्स, पू० ४०-४१.
२... मार्शल-फुशे, वही, भाग £, पु० 3००.
३. इण्डियन एपिय्ाफो (१९६६-६७) पू० ३५, क्रमसंख्या 2 ८४.
४. नि जनेल आफ दी न्युमिस्मेिक सोसायटी, खण्ड २३, पु० ३०७.
५. ल्रियेदी,दि बिषब्लियोग्रफी आफ मध्यभारत आर्कओलां जी, जिल्द £, पु० ४०,
६, टाने, सालविकारिनिमित्रम, पृ० १५१, अंक :--““स्वरित्त यशशरणात् सेनापति: पुष्पमित्रों वेदिशस्थं पुत्रमायुष्म
स्तमग्निमित्नं स्नेहात्परिष्वज्ये अ-दमनुदर्शयति । विदितमस्तु-योध्सी राजयज्ञदीक्षितिन मया राजपुत्रशतबरिवत्तं
वसुमित्र गोप्तारमादिश्य ' ' * * ** **'यवनानां प्राथित: !”'
७. ला, हिस्टारिकल ज्याग्रफी, पू० ३३, फुटनोट २--“'वेदिसा चापादेवाय रेवतीन मितभारियाय पठमोथभो
दानमू ।” करमिघम, भिल्सा टोप्स, पृ० ७ ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...