साँची | Sanchi

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Sanchi by भास्करनाथ मिश्र - Bhaskar Nath Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साँची पर उपयुक्त समझा होगा । दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि विदिशा के आसपास के क्षेत्र में स्थवि'रवादियों की स्थिति कमजोर हो गयी हो और महा +-सांघिकों का जोर बढ़ गया हो; क्योंकि साँची' के अपने स्तम्भ-लेख में अशोक ने संघभेद करने वाले भिक्षु-भिक्षुणियों को कड़ी चेतावनी दी थी । अस्तु, बुद्ध के स्थविरवाद की सुरक्षा के लिए उसने सभी सम्भव उपाय किये होंगे, जैसे बुद्ध के अस्थि-अवशेषों को लाकर विशाल स्तूप एवं विहारों की प्रतिष्ठा पाँच सुनिश्चित स्थानों साँची, सोना री, सतध!रा, आंधरे तथा भोजपुर-पिपरिया में करना अर संघभेद की चेतावनी देने वाले शिला स्तम्भ की प्रतिष्ठा इन स्तूप समूहों के केन्द्र स्थल साँची में करना क्योंकि साँची विदिशा-वासियों के अतिनिकट थी । वैशाली से कौशाम्बी' और विदिशा होकर उज्जयिनी जाने वाले महामागं (प्रतोलिका) पर साँची की पहाड़ी स्थित थी (चिन्न ७५) । उन दिनों अश्मक देश की नदी गोदावरी से लेकर मगध की वैशाली नगरी तक यह महामार्ग जाता था । प्रतिष्ठान, माहिष्मती, उज्जयिनी, गोनदें, विदिशा, तुम्बवन आदि नगर इसी मार्ग पर स्थित थे । साँची के अभिलेखों में इन सभी नगरों का उल्लेख है । प्रतिष्ठान >> पैठान औरंगाबाद जिले में है । माहिष्मती नमेंदा पर बसी हुई महेश्वर या मांधाता नगरी है ।* गोनद या गोनदें उज्जयिनी और विदिशा के बीच स्थित था । बौद्धग्रन्थ महामायुरी में गोनादें-विदिशा का उल्लेख है ? * सारंगपुर (जिला राजगढ़) से प्राप्त तेरहवीं चौदहवीं शती के शिलापट्ट-अभिलेख में गोनदं के ब्रह्मदेव, सहदेव, गोविन्द आदि के दान का उल्लेख है । *ै विदिशा नगरी कम से कम चौथी शंती ई० पु० की अवश्य रही होगी | अशोक के समय में यह एक समृद्ध नगरी थी । यहाँ से प्राप्त तांबें के एक सिक्के पर तीसरी शती ई० पु० की लिपि में वेदिस या वेहूस लिखा है । * तुम्बवन गुना जिले में अशोक नगर के पास बीना-कोटा रेल मागं पर तुकनेरी स्टेशन से दक्षिण स्थित तुर्मन है ।* मौर्यों के बाद पुष्यमित्न शुंग ने मालव पर आधिपत्य जमाया । उसने और उसके लड़के अग्निमित्न ने अपने साम्राज्य की पश्चिमी राजधानी विदिशा में स्थापित की । मालविकास्नि- मिन्न में सेनापति पुष्यमित्र, विदिशा के राजा अस्निमिन्न और उसके पुत्त वसुमित्र का वर्णन है ।* अरग्निभित्र के बाद वसुज्येष्ठ, वसुमित्न (सुमित्न), काशीपुत्न भागभद्र (भद्रक) , देवभूति या देवभूमि विदिशा के राजा हुए। भागभद्र के समय में तक्षशिला के राजा अंतलिंकित ने अपने राजदूत हेलियोदोर को विदिशा भेजा था । विदिशा के शुगराजा रे वी मित्र की पहनी चापादेवी ने भरहुत स्तूप के लिए प्रथम स्तम्भ का दान किया था ।” विदिशा का एक स्तम्भ-लेख महाराज १... पाण्डेय, हिस्टारिकल ऐण्ड लिटरेरी इन्स्क्रिशन्स, पू० ४०-४१. २... मार्शल-फुशे, वही, भाग £, पु० 3००. ३. इण्डियन एपिय्ाफो (१९६६-६७) पू० ३५, क्रमसंख्या 2 ८४. ४. नि जनेल आफ दी न्युमिस्मेिक सोसायटी, खण्ड २३, पु० ३०७. ५. ल्रियेदी,दि बिषब्लियोग्रफी आफ मध्यभारत आर्कओलां जी, जिल्द £, पु० ४०, ६, टाने, सालविकारिनिमित्रम, पृ० १५१, अंक :--““स्वरित्त यशशरणात्‌ सेनापति: पुष्पमित्रों वेदिशस्थं पुत्रमायुष्म स्तमग्निमित्नं स्नेहात्परिष्वज्ये अ-दमनुदर्शयति । विदितमस्तु-योध्सी राजयज्ञदीक्षितिन मया राजपुत्रशतबरिवत्तं वसुमित्र गोप्तारमादिश्य ' ' * * ** **'यवनानां प्राथित: !”' ७. ला, हिस्टारिकल ज्याग्रफी, पू० ३३, फुटनोट २--“'वेदिसा चापादेवाय रेवतीन मितभारियाय पठमोथभो दानमू ।” करमिघम, भिल्‍सा टोप्स, पृ० ७ ।




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