मुग़ल कालीन भारत | Mugal Kalin Bharat
श्रेणी : इतिहास / History, समकालीन / Contemporary
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28.49 MB
कुल पष्ठ :
349
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव - Ashirbadi Lal Srivastava
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प मुराल कालीन भारत
नीति को जारी रक््खा | ग़ानजहाँ के विद्वोह के पश्चात् उसने दक्षिणी सूबे का काय-
भार सम्मालने के लिये श्राज़म खाँ को नियुक्त किया | श्राज़म खाँ ने अहमदनगर
के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया श्र घारुर के दुग पर शधिकार करके परेणडा के दुग
का घेरा डाल दिया । परन्तु दक्षिण की विशेष कठिनाइयों के कॉरण वह युद्ध में
श्रचिक प्रगति न कर सका । झदमदुनगर _ झोर बीजापुर के सुल्तानों में पूचवत्
मनोमालिन्य बना रहा । श्रत: वह दोनां मुरारलों के विरुद्ध एक न हो सके | बीजापुर
के पदाधिकारियों में मुगलों के प्रति अपनाई जाने वाली नोति के विषय में पर्याप्त
मतभेद था । एक दल उनसे मैत्रीपूण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता था तो दूसरा
उन्हें शत्रु समक उनसे घोर युद्ध करने के पक्ष मे था । अनावृष्टि के कारण खाद्य
सामग्री उपलब्ध होने में बड़ी कठिनाई थी, यहाँ तक कि ४० मील के सृत्त में
घोड़ा के लिये घास तक प्राप्त नहीं हो सकती थी । फिर भी जब शाहजहाँ स्वयं घटना-
स्थल पर श्राया तो मुऱल कन्घार के छोटे किल्ले पर जा बालाघाट के पूर्व पक्ष पर
'िित था, झधिकार करने में सफल हुए श्रार उन्होंने बरार, नासिक तथा संगमनेर
को नष्ट कर दिया |
इसी बीच १७ जनवरी सन् १६३१ इं० को शाहजहां की प्राणप्रिय बेराम
मुमतपज़ सुट्ूल की सुत्यु हागई । इससे शाहजहों को जो दुख हुआ उसका वर्णन नहीं
_ किया जा सकता | उसको बुरहानपुर के पास दी एक बाग में दफना दिया गया | बाद
में उसका शव श्ागरा मंगा लिया गया, जहां उसको एक बाग में दफना कर उसकी
कब्र पर संसार प्रसिद्ध ताजमहल नामक मकबरा बनवाया गया |
मुमताज़ महल का जीवन
सुमताज़ महल का जन्म का नाम श्ररजुमन्द बानू बेगम था | यह इत्माडु-
दला के लड़के नूरजहाँ के भाई श्रासफ खाँ की पुत्री थी । उसका जन्म ११४४ दे०
में हुआ । खुरम १४ वप का ही था कि उसके साथ इसकी मंगनी निश्चित हो गई
श्ौर श्रप्रेल सन् १११२ ई० में विवाह सम्पन्न हुआ । यह विवाह अत्यन्त सफल
विवाह सिद्ध हुआ । श्रजुमन्द बानू बेग़ाम ने शाहजहाँ को पूर्णतया अपने प्रेम-पाश
में बाँध लिया । इनका प्रम नूरजहाँ तथा जहाँगीर के प्रेम से भी श्रागे बढ़ गया |
मुमताज़ महल ने शाहजहाँ के जीवन में सुख झोर दुख दोनों में पूर्ण रूप से एक
पतिघ्रता पत्नी की भाँति भाग लिया और उस समय जब कि स़रंम अपने पिता के
विरुद्ध विद्रोह करता हुआ दक्षिण से उढीसा, बंगाल तथा बिह्दार में भागा फिर रहा
था, तब मुमताज़ महल परछाई की भाँति उसके साथ रही । इसके १४ बच्चे हुए
्ौर वह स्त्यु पयन्त सेव श्रपने पति की प्रिय बनी रही । वह शाहजहाँ की
मुख्य पत्नी थी श्रौर उसको “मलिका-ए-ज़मानी' की उपाधि प्राप्त थी । शाही मुहर
नर
विवि ले ककानननकफाकएजकरीजररी
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