धीर - त्थुई | Dhir - Tthui
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.88 MB
कुल पष्ठ :
59
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ बीर-त्युई तदा एप जायते सच््वहीन ( स्वत्वहीनः ) यथा इक प्रयाहारस्य दशा दृद्यते । ११ एत्थ सो एवं झाटिज्जेश जो जस्स गुशाइडि झआसल्नो होइ वागरणेवि एवमेव दीसेइ । इद स एवं आद्रियते यः यस्य गुणादिमि आसन्नो भवति व्याकरणे5पि एवमेव दृद्यते । 1] १२ पोग्गलसंसग्गमावन्नों जीवों स-सरूवाउ चवेइ शावि चवेह चित्तस्स दटभावेण अदटभावापेक्खाए वा जहा सद्दागमे । पुद्ठलसंसगैमापन्नो जीव स्वस्वरूपात् च्यवति नापि च्यवति चित्तस्य दृढ़ भावेन अदूढभावापेक्षया वा 1 १३ बंक॑ दडश उज्जू वा बंको वा सब्वों पायेण लहू होइ जहा वायरणे । ११ ज्ञा० आासन्न १1१७ । इह आसन्न-अनासब्रप्रसंगे स्थानगुणप्रमाणादिभि एव विधिरुपात्तो वेदितब्यों लोकाग्रम् मुनीन्द्र । पा० स्थानेडन्तरतम १।१।५०३ १२ शा० ह्लस्वो बाघपदे १1१1७ढ४ । इक स्थाने5स्वे अचि परे ह्लस्वादेशो व। भवति । नदि एवा । नहोदा । पा० इकोज्सवर्ण १३ ऋत्यक ११1७५ । श्रक स्थाने ऋति-ऋकारे लकारे च अचि परे ह्लस्वो वा भवति । सह ऋषि --महषि । घूलिलृतः--चूल्य्लूत ।
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