कवि निराला | Kavi Nirala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी और व्यक्तित्व 9 था । पर जिस सीमा तक यह असहनशीलता निराला मे दिखाई पड़ी उसम उनकी बयविनक प्रतिक्रिया भी कुछ न कुछ अवश्य थी । महात्मा गाधी से उनकी हिंदी कविता संबंधी बातचीत, पड़ित नेहरू से हिंदुस्तानी पर विवाद और फजावाद सम्मेलन म पुरुपीत्तमदास टडन और सपुणानद आदि से उनकी वहस, उनके निजी आाकोश को सूचित करती हैं । जहा एक आर उनकी मनोभावना इस प्रकार तीघ्र हो रही थी, वहा दूसरी ओर उनकी कविताआ से वयक्तिक व्यग्य का प्रवेश हो रहा था । ये घटनाएं उनकी पुन्नी के निघन के तत्काल पश्चात की है । इनसे निराला के क्षुब्घ होत हुए मनोभावो का अनुमान किया जा सकता है । वह्ठ उन दिनों अपनी सहज वन को और अपन गभीर मर शालीन स्वभाव को स्थिर नहीं रख पाए थे । पच्यपि यह बडी हद तक स्वाभाविक था परतु निराला के इस बदले हुए मनो- भाव का उल्लेख करना जावश्यक है। उनके काव्य पर और उनके साहित्यिक लेखन पर भी इसकी प्रतिक्रियाएं बहुत कुछ स्पष्ट है। उनने' व्यग्य का य का उल्लेख हम ऊपर कर चूके हैं । इ ही दिना उनकी कुछ अधिक लबी और उदात्त रचनाएं भी लिखी गई थी जिनमे “राम की शक्तिपूजा और तुलसीदास प्रमुख है। राम की शक्तिपूजा' मे राम की विजय एक उत्कट साधना के पश्चात उपलब्ध होती है । सारी कविता उस साधना का ही आनेख करती है। इसी प्रकार 'तुलसीदास मे मुख्य विवरण उन विपरीत परिस्थितियां का है, उस अधेरी सध्या का है -- जिसका उच्छेद करते हुए 'तुलसी शशि' का उदय होता है । इस लवी कविता के आरभ में भारत बे सास्कृतिक सूप का अस्त होना और अत मे तुलसी शशि' का उदय होना आलेखिंत हुआ है । यदि इन दोनों कविताओं में व्याप्त विपरीत परिस्थितियां को निराला के निजी व्यक्तित्व म व्याप्त विपण्ण चेतना सं “सयुक्त करके देखा जाए, तो यह चात होगा कि कन्रि निराला चतुशिक व्याप्त अवरोधा मे बिजय की सभावना को अतिम आशा के रूप में देखने लगे थे । इसी के साथ जब हम उनके गद्यलेखन में भी व्यग्यात्मक क्थानकी और रेखाचित्रो को देखते है और समीक्षा की भूमिका पर सुमिबानदन पत पर धारावाहिक रूप से दोपदशन के निवधा को पढ़न हैं तब वह नाभासित हो जाता है कि 36 से 40 तक निराला की मन स्थिति मे काफी परिवतन हो गया था और वह संतुलन की भूमिका से दूर होत जा रह थे। सन 40 के पश्चात निराला अधिक अतमुख रहने लगे और उनकी बातचीत मे थाड़ी बहुत अव्यवस्था भो दिखाई देन लगी । मन ही मन कुछ बातचीत करते हुए अचानक ठहाका मारकर हस पड़ना अपन को रवीद्रनाथ का परिवारी बताना और चचिल रूजवेल्ट जादि से होनेवलों बातचीत का जिक्र करना इन्हीं वर्षों की विकृतिया हैं, जा क्रमश निराला पर हावी होने लगी थी ।




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