कलियुग | Kaliyug

Kaliyug by आनन्द प्रसाद खत्री - Aanand Prasad Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( न) तिश्ला से बदल शायगा ॥ सन्द्र टरे साज टरे; टर पध्दो श्राकाश | पे मेरो यद टू बचन, कब्हु ने होत निराश ॥” आनन्द । प्रभो में प्रतिज्ञा तोड़ने को कदापि नहीं रहता केवल यहीं बिनती हे कियइसंघ्र करने के प्रथम तनिक सोच लीजिये सरेन्द्र० । देखो धनय की चढ़ी है ; तीर क्र पे में मत झांवो । यदि सदा के हेत चप न होना. हो तो थोड़ी देर के हेत चप हो जावो ॥ चप ! कया चप ! प्रभा। चाटकारों की भरते झाप को नरक की गुफा में दैकेले शॉर टुप्ठ लोग झाप को श्रांसों में चाटुकारी की पट्टी बांधे कर कष्ट को गुफा मे ढकेलें शौर यह दास नही से कुछ भी न बोले घि- छार है ऐप दास पर को इस प्रकार घम्म विमुख हो !. न चुप है न यह शंत तक चप रहेगा । यहीं कह रहा हैं यही फिर ॥ सुरेन्द्र । क्या ! । कि झाप शपने छपर बुरा कर रहे रद इुरा कर रहे हैं “' बरा कर रहे हैं !!! । सौगेंय है संस सब शंक्तिमानू को कि हमें श्यायातिरिक्त नहीं पर उठाते हैं । जानरदू । है नरेश ! शमा कोजिये शाप दृचा कटों सौरभ खाते है । (राजा का रटार शानन्द पर तानना का सहां ) जम क्यों $ **७ ् सर्द दर डर हर दे इरन्द्र । कों रे चुद अब तू यहां तक रुट्रइता परे




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