पं. अम्बिकादत्त व्यास व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Pt. Ambikadatt Vyas Vyaktitva Avam Krititva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.4 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. प्रभाकर शास्त्री - Dr. Prabhakar Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नर
सु्र्ति्ध प्रकार शास्त्रों एवं सुप्रतिष्ठ दार्यनिक दिद्वानू डा- द्ह्दानन्द
शर्मा ने। संस्कृत मापानाध्यम से लिखे “शिवराज दिजपे ध्मेस्य दर्शनस्प च
सल्लिदेश.” दोपक शोधलेख में डा. दर्ना ने उपयुक्त दोनों तत्वों घर्म एदं
देन के झनुप्तार शिवराजविजय का सूस्यांकन किया है। न केदल
राजस्थान प्रान्त में अपितु, समस्त भारत भूमप्डल में दाव्य - सत्यालोक
सिद्धान्त के प्रतिप्ठापक भर्यात् सत्य को काव्य को भात्मा स्वीदार करने
के पन्नघर, वैदिक, साहिंत्ययाद्त्र एवं भारतोय दर्शन के गम्मीर दिदेचर
डा शर्मा का व्यक्तित्व यपानामस्तथायुपः के
के झनुरूप है । राडस्पान प्राच्य
दिया प्रतिष्ठान के पुर्वेमिंदेशक के रूप में भी झापक्ों सेदाए संस्मरणीय
हैं । राजर्यान के माघुनिक दिद्वानों की गणना में मारकों विस्पूत नहीं
किया जा सकता । भलंकार शास्त्र के माप गम्भीर चिन्तक हैं घोर इसी
पर भापने दोघका्य मी किया है तथा भनेरू महत्वदूर्ग लेख सी प्रकाशित
किए हैं।
*दिवराजविजय”” संस्कृत साहित्य के क्षेत्र से ऐतिहासिक झति के
रूप में चचित है। उतमें घत्रपति शिदाजी के जोवन चरिय दा विदेचन होते
के कारण हो ऐतिहासिक नहीं माना गया है, भपितु ऐसे भनेक दिन्दु है,
जो उसे एक सफल ऐतिहासिक रचना स्वीकारने में सहयोगी हैं । ऐदिहा-
सिक विदेचना को सप्रमाण प्ररजुत बरतने के लिए वर्तमान में केग्द्ोय
संस्कृत विद्यापोठ, जयपुर के सा हत्य - दिमाग में प्राध्यापक के रुप में
कार्यरत डा. रुपनारायण दिपाठो से घनुरोध दिया गया था कि वे शिद-
राजविजय वी ऐतिहासिक विन्दुपों के परिप्रेहय में समालोचना प्रस्तुत
करें, इसीलिए उन्होंने “शिवराजविजप को ऐतिहासिशता” दिपय पर
इोघपत्र प्रस्तुत किया । ऐतिहासिक दृष्टि से किया गया यह विवेचन
दस्तुतः चिन्तनीय एवं इलाघनोय है ।
केन्द्रीय संत्त विद्यापीठ, जयपुर के साहित्य विभायाध्यप्ष दा. थ्रो
लगघारापण पाप्डेंप ने पं. पम्दिवादतत ब्या्त के उच सूप को सुमीशा
को है, जो लोक में बहुत चचिठ है। पं. व्यास को सोग झभिनव दाघ से
रूप में जानते हैं, परन्तु उनका विचार कितना सोपपत्तिक है, यह इस
User Reviews
No Reviews | Add Yours...