यजुर्वेद भाष्य में इन्द्र एवं मरुत | Yajurved Bhashya Me Indra Avam Marut
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.89 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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No Information available about चितरंजन दयाल सिंह - Chitaranjan Dayal Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय
विपय-प्रवेश
स्वामी दयान द के यजुर्वेद भाष्य में १ द्र एवं मस्त देव के स्वरूप के
विधय में विचार करने से पूव यह आद'यक प्रतीत होता है कि स्वामी दयानन्द ने अपने
बेद भाष्य के आधार रुप में जिन मायताओआं और सिद्धा तो को अपनाया, उनका
विवेचन किया जाए । वेद और वेदाथ के रवेरूप के सम्ब ध में प्राचीन एवं परम्परा-
गत मा यहाओ भौर सिद्धा तो का समीक्षण एवं परीक्षण भनिवाय सा हो जाता है ।
प्रस्तुत पुस्तक के विधय अ्रवेश नामक प्रथम अध्याय में इसी दष्टि से रवामी ज़ी
की दप्टि में वेद और वेदाथ का स्वरूप, यजुर्वेद के भाध्यकार तथा प्रसगानुसार
वैदिक सहिताओों के मत्रो के ऋषि व दंवता आदि पर भी विचार क्या गया है ।
(क) स्वामी दयान्द की दृष्टि मे वेद और वेदा्थ का स्वरुप
नवभारत के पुनर्जागरण व पुनरुत्यात में स्वामी दयान द का अत्यत महत्त्व-
पूण मोगदान रहा है । स्वग्मी नी न पाइचाइय जगत द विदेशी सम्यता के साकचिक्य
से मभिभुत भारतीय दृष्टि को. आत्म तिरीक्षण की प्रेरणा दो । उन्होंने भारतीम
जनता के निराध हृदया में आत्मसम्मान व ओत्मगोरव का भाव उत्पन क्या ।
स्वामी जी ने वेद की सब सत्यविद्याओं की पुरत्क सिद्ध क्या 1 वेद सब सत्य»
विद्या वा पुस्तक हू यह सिद्धात स्थापित क्या व “लौटो बदों को जोर का उदघोष
किया 1 रंवामी जी वी दाप्टि से वेद केवल कमकाण्ड के ग्र थ नही हैं अपितु बेदो में
जीवन निमाण को सभी शिक्षायें विद्यमान हैं। वैदिक मत्रा का मुख्य अतिपाद्य ब्रह्म या
परमात्मा है । वेद समरत माध्यास्मिव और व्यावहारिक ज्ञान का भण्डार है । स्वामी
दयानद ने वेद को आधार बनाकर प्राचीनतम परम्परा तथा वीद्धिवता का समन्वय
करते हुए अपने माग को प्रशरत बरने के लिए वेदों के भाष्य बिए और एक विपुल
बाइमय का निर्माण क्या । ऋषि दयानंद के समस्त ग्र था मे कऋग्वेदादिभाष्य-
भूमिका का महत्त्व सदसे अधिक है। इस प्रथ मे वेद के उन मदृत््वपूण सिद्धान्तों
और बेदाय वी प्रश्रिया की. यारा की गई है, जिस पर स्वामी दयानद इत
चेदमाप्य आधत है । स्वामी जो की दृष्टि मे मूल वेद के स्वरूप पर विचार करते
हू. द०-दयानद दान एक अध्ययन, प्राकू० पृ है
पद. द्र०-कग्वदादिमाध्य भूमिका, पूर है
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