मिथक और यथार्थ | Mithak Aur Yatharth

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दामोदर धर्मानंद कोसांबी - Damodar Dharmananda Kosambi

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राम शरण शर्मा - Ram Shran Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना इन निवंधो की एक सामान्य विशेषता यह है कि ये साहित्यिक प्रमाण श्रौर क्षेत्रीय: शोधकायें दोनो को मिलाकर किए गए श्रघ्ययन पर झाधारित हैं । देशभक्ति के उत्साहू मे वास्तविकता को नजरश्रदाज करने वाले मारतीय शभ्रालोचक यहू देखकर भुकलाएंगे कि मैंने उन बातों पर विदषेप बल दिय। है जो उपेक्षित रही हैं । प्रचलित श्रघविश्वास के निरनंद दलदल में घंसने के लिए भारतीय दर्शन की खूबसूरत कमलिनी को श्रनदेखा बयों किया जाए । कमलिनी के सौंदर्य को कोई भी सराहेगा फितु उस भौतिक प्रक्रिया को, जिसके द्वारा कीचड़ श्रौर गंदगी से बाहर भरा कमलिंगी प्रस्फुटित होती है, खोजने के लिएं वैज्ञानिक प्रयर्नों की श्रावश्यकता है । ,. विकास की यह प्रक्रिया केवल उन दार्शनिक पद्धतियों के भ्रध्ययन से स्पष्ट नहीं हो सकती जो मारत में पहले प्रचलित थीं । शंकराचार्य, उनके पहले के वीद्ध और बाद के वप्णव, सबों ने विश्वास के दो अलग-श्रलग खुद कायम कर दिए थे उच्च स्तर श्रौर निम्न स्तर्‌। उच्च स्तर हर तरह से झ्रादर्श ग्रौर श्राध्यात्सिक: था. जहां पर मय रे पाहमा कश्यित प्रमहा का किलर न सस्ती औ की भात्मा कल्पित थुखर चूम सकती थी । तिपतु_ स्तर उूग स्तर था ५ क्पसफंडी, दिशियं गे; सफयपरण सोरगों: के एग: फात्यरत्यादी, चार्ोलिय थी दयामिल होता था, लेंकित वही तक, जहां तक उसका धास्त्र वास्तविकता के गंदे स्पर्ण से बचा रहे । यहां चिचार ब्ौर श्रादर्श घाइवतकाल से रहे हैं । सासारिक जीवन उस ऊंचाई पर जिसका सचमुच महत्व है, कभी नहीं पहुंच सका है । 1. दुनिया में जितने घामिक विश्वास प्रचलित हैं उन सवमें उनके प्रादिम तत्व बचे रह गए हैँ । भगवान, श्राज की रोटी दो' यह भार्थना दुनिया वी घधिकांश




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