भारतीय मध्य युग का इतिहास | Bharatiya Madhya Yug Ka Itihas

Bharatiya Madhya Yug Ka Itihas by ईश्वरी प्रसाद - Ishwari Prasad

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नाम - ईश्वरी प्रसाद
जन्म - 29.12.1938,
गाँव - टेरो पाकलमेड़ी, बेड़ो, राँची

परिजन - माता-फगुनी देवी, पिता- दुखी महतो, पत्नी- दुलारी देवी

शिक्षा - मैट्रिक; बालकृष्णा उच्च विद्यालय, राँची, 1952
आई० ए०; संत जेवियर कालेज, रॉची, 1954-1955
बी० ए०; संत कोलम्बस कालेज, हजारीबाग, 1956-1957

व्यवसाय - शिक्षक; बेड़ो उच्च विद्यालय, 1958-1959, सिनी उच्च विद्यालय, 1960
पशुपालन विभाग, चाईबासा, 1961, राँची, 1962-1963 मई 1963 से एच० ई० सी०, 1992 में सहायक प्रबंधक के पद से सेवानिवृत

विशेष योगदान --

राजनीतिक -
• एच० ई० सी० ट्रेड यूनियन में सीटू और एटक का महासचिव
• अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, चेकोस्लोवाकिया में ट्रेड

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( पी काल होते है, इसका प्रारम्भ होता है; इसका मध्य होता है, और इसका अन्त होता है तथा मे अन्य आदर्श सन्घियाँ होती हैं जो एक साटक मे विवक्षित और अपेक्षित होते है।” दार्थनिक राजनीतिश त्यूरगो ने सॉसवॉन में “मान- वीय मस्तिप्क का क्रम-विकास” ओीर्पक अपने भापण में क्रोचे के इन बिंचारों का यह कहकर समर्थन किया था कि इतिहास मानवता का जीवन है, जो क्षय एवं पुनरुत्थान में से होता हुआ निरन्तर प्रगतिशील है, जिसका प्रत्येक युग, अपने से पहले के तथा अपने आगे के युग के साथ जुड़ा हुआ है। यह काल- विभाजन सोरीप एवं भारत दोनों के ही इतिहास में अनुलक्षणीय है, क्योंकि दोनों में इन तीनो कालों का एक दुसरे से स्पष्ट स्वरूप-भेद दिखाई देता है । इसक्तिए इतिहास की मूलभूत एकता को, जो हमारे ज्ञान की आधार-शिला है, संग न करते हुए, हम प्रत्येक काल की घटनाओं का वर्णन और उनके महत्व का प्रतिपादन कर सकते हैं। इतिहास का जो विधाल दृश्य-पट हमारे सामने विस्तृत है, उसमें दृश्यावलियाँ परिवर्तित हो जाती है, धरती पर चलनेवाली आछृतियाँ अपरिमेय अज्ञात में विलीन होती रहती है, परन्तु बिकास-क्रम अधि- च्छिन्र अवाध यति से निरन्तर चरुता रहता है। इतिहास हमारे सामने घटनाओं एवं परिस्थित्तियों को जो अनेकरूपता एवं विविधता उपस्थित करता है, हमें उसकी तह में छिपी तात्विक एकरूपता की ओर प्रगति के शाश्बत सिद्धान्तों का अत्वेपण करना हैं; यहीं इतिहासकार का वास्तविक विपय है। इन पृष्ठों में यह दिखाने का प्रयत्न किया जायेगा कि भारतीय इतिहास में मध्य-काल की क्या देन है' और वे कौन-से ऐसे स्पष्ट प्रभाव है जो हमारी आज की सम्यता के आधार बने है। हमारी प्राचीन सम्यता की महानता के विपय में बहुत कुछ लिखा जा चुका' है। आधुनिक गवेपणओं ने हमारे पूर्वजों पर उगाये गयें राजनीतिक निष्कियता एवं पिंछइपन के आक्षेपो का परिहार कर दिया हैं। हमारे विद्वानों ने सिद्ध कर दिया है कि प्राचीन काल के हिन्दुओं का राज-तन्त्र बहुत विकसित अवस्था में था और वह अपने स्वर्ण-काल में यह राज-तन्त्र यूनानी दांनिकों के 'पोलिस (०9) के भादयों को पूर्णतः: क्ियास्वित करता था। राज्य घर्म पर आधारित था; प्रजा को सुखी बनाना राजा का कर्तव्य होता था और सभी राजनीतिक संस्थाओ का चरम लक्ष्य सारे समाज की भौतिक आवशइ्यकताएँ पूरी करना एवं उसका नैतिक विकास करना होता था। प्राचीन भारत में सार्वजनिक संस्थाओं का भी अभाव न था। बंदिक काठ त्तक में हमें प्रजापति की दो पुरत्रियों सभा एवं सिमिति' की झाँकी मिलती है, जो. सार्वजनिक सहयोग एवं सहमति से सार्वजनिक कार्यों का संचालन करती थी । वौद्ध-साहित्य




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