राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला | Rajasthan Puratan Granthank
श्रेणी : भारत / India, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.94 MB
कुल पष्ठ :
445
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जप मक्तमापत मैं इसे एक स्वतम्प्र प्रन्य ही सममना चाहिये। पहु ब्जमापा में है जिस पर राज स्मामी का भी थोड़ा-सा रंग लगा है। चिता यहूत ही सरस भौर प्रवाहयुक्त है। . इसमें दिये हुये कवीर-चरिषर को सेनारियाजी मे भपने राजस्थाम में ट्विग्दी के हस्तशिशित प्रन्पों बी शोज भाग १ में पूर्ण रुप से पद्ध त कर दिया है। इस प्रन्व की पम्प प्रति हिन्दी विद्यापीठ पायर के संप्रह में है उसके भनुसार इसको रचना सं० १८६३ के फास्गूत एकदशो सोमवार को हुई है । ७. मक््तरसमात्त-जजजीवनदास रचना सं० १६१४। सन् १९०४ से १६११ की रिपोर्ट में इसका विवरण प्रकाशित हुभा है । पंडित सहाबीरप्रसाद माजीपुर के संग्रह में इसको प्रति हैं। विवरण में इसकी प्लोक संख्या ८५० बतसाने से यह बहुत ही संक्षिप्त मासूम वेती है । ८ . हरिंमक्तिप्रकाशिका टीका--सेतड़ी निवासी हरिप्रपस्त रामानुज दास कायस्प मे इसकी रघता की ।. जिसे पंडित फ्बासाप्रसाद मिश्र ने विस्पृत करके लडमी वेकटेआर प्रेस से सवत् १९५६ में प्रकाशिठ की थी । भूमिका में श्री मिथ्जी ने लिखा है कि चदूं भाषा संस्कृत घर्दोबद्ध भादि कई प्रकार की भक्तमाल इस समय मिस्तो हैं. सपा एक इसी भक्तमास को दोहे-घौपाई में मैंनि भी रचमा किया है जो प्रमी तक प्रकासित महीं हुई है।. संबतु ११४४ मुराबाबाद में मि्नजी मे इस हरिमक्तिप्रकासिका टीका को नये रूप से लिखके पूर्ण की । ७७६ पृष्ठों का यह प्रन्प भ्रश्र्य ही महत्पपुर्णं है। हिस्दी पुस्तक-साहित्य में रामागुबदास कत हुरिमवितप्रकासिका टीका का उस्मेल है । १. भक्तिसुभास्वादतिलक--इस की रचना शयोष्सा निवासी शी सीतारामसरण भयवामप्रणाद रूपकतला ले संबत् १११० के बाद की है। मूस मबतमाश थ प्रियादास की टीका के साथ इसे संवयु १९५६ में काषी के अशदेव नारामणु ने प्रकास्ित की । इसका तोसदा संस्करण तवशलकिशोर प्रेस लखतऊ से प्रकाशित हुपआा । इसके प्त्त मैं प्रियादास के पौज शिष्य बेध्याबदास रनित मबत माल महारम्प भी छपा है । १०० पृ्ठों का पट प्रम्प प्रपमा विशेष महत्व रखता हैं १०. सखाराम मीकेत कुत टीका-- हिंवी में उ्तर-साहिरय नामक ग्रम्थ के पूष्ठ ४८ में अम्बई से इसके प्रकादत का उस्सेक है । इसी प्रस्थ में तुलसी राम की टीका (?) सबाउल ससूम प्रेस भृहाता से प्रकासित होने का उल्तेख है तथा
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