म्रत्युंजय भीष्म | Mrityunjay Bhisma
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.2 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुत्युंजय भौष्म 17 पघारे । भीष्म विचित्रवीयें का विवाह काशिराज की कन्याओं से करके अपना कर्तेिव्य पुरा करना चाहते थे । काशिराज की तीन कन्याएं थी--अम्बा अम्विका गौर अम्बालिका । काशिराज के सभाभवन में आर्यावत्तं के समस्त नरेश आये हुए थे । प्रजाजन भी उस उत्सव को देखने भाये हुए थे । काशिराज की तीनों राजकुमारी अपना वर स्वयं चुनने के लिए सखी-सहेलियो के साथ समाभवन में प्रविप्ट हुइं। मंगलवादन और गान होने लगा । राजाओं मे उत्साह दिखाई देने लगा। एक ओर से उपहास-सा सुनाई दिया । कुटिल नरेश भीष्म को संकेत करके व्यंग्य-भरे स्वर में कह रहे थे यही हैं शांतनुनन्दन भीष्म जिन्होंने ब्रह्मचरय ब्रत का प्रण किया था ? ये वोरवर तो अपने वचन के बहुत पक्के हैं । अब ये राजकुमारियों का वरण करके अपने स्वर्गीय पिता की आत्मा को प्रसरन करेंगे । धन्य है इनका कुल और घन्य है इनका चरित्र राजकुमारियां भी भीष्म की ओर पैनी दृष्टि से देखने लगी । भीप्मस उन वलह्दीन राजाओ के व्यंग्य-बाण सहन नहीं कर सके । उन्होंने भरी सभा में काशिराज के समक्ष घोषणा की हे काशिनरेश आप राजाओं मे श्रेष्ठ घैयंवान एवं धर्मनिष्ठ हैं। इन दुर्वुद्धि भूपालो ने मेरे कुल एवं पितृव्यों की घोर अवमानना की है । मेरी सत्यनिप्ठा ब्रह्मचये ब्रत एवं वंश- गौरव को चुनोती-भरे व्यंग्य-वाणो से वेघ डाला है। हम भरतवंशी धन वैभव सम्पत्ति का कभी अपहरण नही करते परनारी को मातुवत् स्वीकार करते हैं परंतु रण-भूमि में काल की भी चुनौती का सामना करते हैं । मेरा ब्रत अडिग है मेरा वचन अन्यया नही हो सकता । इन कुटिल क्लीव राज़ाओ के समक्ष घोषणा करता हू कि मैं इन तीनों राजकुमारियों का वलपूर्वक हरण करता हूं । काशिराज भीष्म के बल-पराक्रम को जानते थे । वे कुरु राष्ट्र के मित्र थे । वे कहने लगे हे महावाहो बलपुर्वेक कन्याओं का अपहरण शाौर्य॑वंत नरेशों का धर्मसम्मन कर्म है । मैं सहपे अनुमति देता हूं कि इन राजाओं को हराकर तुम राजकुमारियो को हस्तिनापुर ले जाओ । काशिराज के इन साहसिक वचनों से राजाओं की भुजाएं फड़कने लगी । वे कहने लगे काशिराज ने हमें स्वरयंवर मे बुलाकर घोर अपमान किया है । स्वयंवर राजभवन अपहरणस्थल कंसे बन सकता है? भीष्म के रथ को सगस्त नरेशो मे घेर लिया । देखते-देखते वह उत्सव रण- भूमि वन गया । भीष्म ने अपने धनुप पर वड़े तीक्ण बाण चढाये | राजाओ का मांगें बाणों से अवरुद्ध हो गया । फुकारते हुए अग्निवाणों ने उन कायर नरेशों के मन में भय उत्पस्न कर दिया । कुछ राजाओं ने भीष्म की शरण ग्रहण की कुछ हताहत होकर गिर गये कुछ भाग गये । द तीनो राजकुमारियों को बलपुबवंक जीतकर भीष्म ने विचित्रवीर्य सहित हस्तिनापुर में प्रवेश किया । विजय के वाद्यगान के साथ माता सत्यवती ने भीष्म का स्वागत किया । भीप्म ने राजपुरोहित को बुलाकर कहा कि तीनो राजकन्याओ
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